मंगलवार, 11 सितंबर 2012

राष्ट्रनिर्माता को वेतन !

मनोहरपोथी, स्लेट,कच्ची पेंसिल से लैश बस्ता उठाये सखिचन पासवान स्कूल के 'बालवर्ग' का छात्र, मात्र १५ दिनों के लिए था .१० रुपये की छात्रवृति उसे छात्र बनाये हुए था क्लास में आसन ज़माने के लिए एक खाली बोरी अपने अपने घर से रोज बस्ता की तरह लाना ले जाना होता था नहीं लाये तो फर्श पर बैठिये .चौथी और पांचवी क्लास में डेस्क बेंच उपलब्ध था.सब मास्टर साहेब का हाथ छड़ी से सुशोभित रहता /.पेन और पतली कानूनी डायरी जेब में ! बिल कब गया , वेतन कब मिलेगा की चर्चा में छड़ी भूल आये मास्टर साहेब को छड़ी उपलब्ध कराना मोनिटर का कर्त्तव्य था . दस बजिया स्कूल का मोनिटर आम तौर पर कक्षा में प्रथम आने वाला छात्र ही होता था .मास्टर साहेब को शोर गुल से बहुत परहेज होता था . और बच्चे को अनुशासन से / कुछ मास्टर साहेब शिकायत की सुनवाई दोनों पक्ष को पहले बराबर -बराबर छड़ी बजार के, फिर से दोषी को ऐसे पिटते थे कि बिना ट्रेनिंग के कत्थक और भरतनाट्यम कर लेता था . पिटाई की क्रिया में छड़ी का टूटना नित्य क्रिया में शामिल था .नई छड़ी की व्यवस्था मोनिटर...के जिम्मे , और पीटने की प्रबल संभावनाओ से लैश बच्चे, इशारे में कमजोर छड़ी के इंतजाम की पैरवी कर लेता था . हिंदी , उत्कृष्ट कब की हो गयी होती अगर बोलने दी जाती . आज अंग्रेजी बोलने को उकसाया जाता है . तब खडी हिंदी पर पाबन्दी थी . मार खाने में माहिर राम प्रवेश दुसरे साथी के लिए भी अवसर उपलब्ध करवाने में हिचकता नहीं था . धीरे से एक लप्पड़ जड़ दिया सखिचन के पीठ पर . सखिचन १०-१५ दिनों से लगातार मास्टर साहेब की हिंदी पचा रहा था . लेकिन आज उसने शिकायत में उलटी कर दी .संवाद -" मास्टर साहेब मारती है ! " कौन मारती है ? "ईस मारती है !" तू भी कम खच्चर नहीं है के मंत्रोचारण के बाद एक छड़ी स्वाहा हो गया . वो दिन सखीचन का आखिरी स्कूली दिन था . बाद में पता चला मास्टर साहेब वेतन के लिए प्रतीक्षारत थे / और वेतन अगले माह आने की खबर से विचलित भी थे ./ राष्ट्रनिर्माता को वेतन भी पुरस्कार की तरह दिया जाता था .कब पुरस्कृत होंगे पता नहीं ! आज कोचिंग टिउशन चालू है छठे वेतन लागू है ,!

भविष्य पर भरोसा !

महाभारत अपने घर में रखने और रोज पढ़ने वाले पं.शिव मिश्र तीस साल पहले अपने प्रथम पुत्र की शादी तय कर रहे थे /जन्मपत्री और फोटो के सहारे बातें बनती दिख रही थी / अब मध्यस्थ अपने प्रमुख भूमिका में आने को आतुर था 'लेना एक न देना दो' को झुठलाने के लिए'लेन -देन ' का चर्चा धीरे धीरे गरम हो रहा था / कन्या के मैट्रिक होने से, कन्या पिता की आवाज में 'टनक' बरकार था और उधर महाभारत और तमाम साहित्य से बीर ...रस 'चुआ' कर पिए हुए वर -पिता का स्वर कमजोर बैटरी के रेडियो जैसा कभी अप -डाउन जा रहा था /.''ये आप करेंगे ,ये भी आपके ही तरफ से होगा और हाँ ये भी और ....'' ये भी, वो भी'' सुन - सुन के कन्या पिता में वीर रस ट्रान्सफर हो गया / बोल फुट पड़े '' आप क्या समझते है मेरी लड़की मैट्रिकुलेट है !'' ''तो मेरा बेटा बी.ए. बुलेट है '' का जबाब तपाक से पा सहम गए / अंग्रेजी साहित्य से स्नातक पुत्र , गाँव के ड्रामा में कभी चंद्रशेखर आजाद , कभी अभिमन्यु बन जाता था . बाकी नियमतः दोपहर से सूर्यास्त तक का समय ताश के पते के सहारे काट लेता था /.हलाकि बाद के वर्षों में ... चीनी मिल में किरानी होने से किसान का पैसा मारने की आदत के कारण पहले पैसा और बाद में इसका सह उत्पाद 'इज्जत ' कमाया बेइज्जत हो हो के / भविष्य पर जितना 'भरोसा' 'कन्या पिता' को होता है उतना 'वर- पिता' को शायद ही होता है / बिना 'विनिमय' के 'बाजा' नहीं बजता .' मैट्रिकुलेट , बी.ए. बुलेट के साथ बाँध दी जाती है, समुचित सम्भावना के साथ / संभावना के दायरे का गठन धुक धुकी से ही शुरू होता है .वैसे सम्भावना तरल होती है ठोस मान लिया जाता है / सम्भावना सत्य भी हो जाता है जो सत्य न हो पाता है वो एक सीमा तक छटपटा कर संतोष को जन्म देता है / पर ये संतोष 'संतोषम परम सुखम! ' को सत्यापित नहीं कर पाता / ************************** बिहार से चला, परम ज्ञानी ननग्रेजुएट दिल्ली आता है ,बिना 'लभे' लाभ कमाया जाय का लक्ष्य लेकर / कम्प्यूटर के शिक्षण प्रशिक्षण पाकर , अपना प्रशिक्षण केंद्र तक का सफ़र पहले मुश्किल अब आराम से तय कर रहा है . ८ लाख का दहेज़ उसे सहेजने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. सफलता का असर 'दिल' से लेकर दिमाग तक सफ़र तय किया लगता है . धरमपत्नी सुन्दर , सुशिक्षित , होने के बावजूद परित्यक्ता की जिंदगी जी रही है माँ बाप ने ८ लाख का विनिमय- वितरण को दोनों पक्षों ने सार्वजनिक किया था / अब सुन रहा हूँ एक कार की मांग का समारोह है जिसमे वो लड़का 'सपरिवार सादर आमंत्रित है '.सुयोग्य कन्या को बेकार साबित करने वाले यज्ञ में वो मध्यस्थ भी शामिल है / कार मिलते ही उस लड़की को सरकार समझने को समझाया जा रहा है कन्या पक्ष को / उम्मीद से नींद गायब है लड़की का / लेकिन कन्या पक्ष 'चायनीज सामान' की गारंटी चाहता है / ८ लाख का रकम ,सोना देकर जब रोना हाथ लगे फिर ३ लाख का कार कैसे दमदार साबित हो / देना तो पड़ेगा जब सामने वाले को बड़ा माना है तो / माँगना है तो माँ बाप से मांग न ! नहीं तो "रूपं देहि , जयं देहि, यशो देहि द्विषो जहि" गा ले ! मर्यादा समुद्र से बड़ा होता है . हनुमान भी नहीं लांघ पाते / क्या होगा ? माँ जाने !

चाचा-भतीजा

बच्चा पैदा ले बाप की ख़ुशी दबी दबी सी भले ही रहे ,चाचा की ख़ुशी उछलती कूदती नदी होती है .बाप की डांट की खाट खड़ी करता चाचा का प्यारा सा थाप बच्चे की मौज मस्ती का उतम इंतजाम करता रहा है .लिया -दिया के युग में बच्चे भी चाचा को प्रोमोट करते रहे हैं . बाप भी किसी का चाचा है वह भी उसी रवैया को अपनाता है , जो परंपरा चाचा और भतीजे के लिए तय है . कितना जानदार सम्बन्ध है , बेहद प्यारा ! ''क्यूँ भाई चाचा ..., हाँ भतीजा !'' से परिवार के सारे सदस्य मंद मुस्कान या ठहाकों के बीच सफ़र तय करते होते हैं .यह एक ऐसा रिश्ता है जिसका उपरी परत नाम के लिए आजन्म रिश्ता ही कहलाता है निभाता है पर अन्दर की परत का धीरे धीरे सड़ना कब शुरू होता है अहसास दोनों को नहीं होता .मतलब अन्दर की परत रिश्ता नहीं निभा पाता, पाक नहीं रहता . पाकिस्तान पैदा करता है जज की भूमिका के लिए अमेरिका पहले से मौजूद होता है .दोनों जज की न सुने ये जज भी चाहता है .धीरे धीरे बेटा ''अपना खून अपने को खिचता है '' के सिद्धांत को सही साबित करने की गरज से बाप के करीब आता जाता है . रिश्ता मिजाज से चलते है मसाज से नहीं ! सीमा तय है सबकी पर किसी रिश्ते की आकस्मिक मौत न हो , इसका प्रयास न हो . उपरी परत जितना मजबूत और चमकीला हो अन्दर वाली परत भी कम न हो .पर रहता कहाँ है ?

गुरुवार, 31 मई 2012

आमिर आजिज हैं हम !

आमिर, जारी रहे ! यहाँ कोई भी कुलपति के चरित्र में झांक के विश्वविधालय में नामांकन नहीं कराता. प्राचार्य की जन्म कुंडली देखे बैगैर विद्यालय जाता है .शिक्षक संविधान के किस अनुछेद में छेद किया है बिना पता किये हुए चुपचाप शिक्षा ग्रहण किये हुए लोग है ये .बड़े दलाल , लुटेरे के संस्थान से बिना उसकी कुंडली मिलान किये विद्योपार्जन , धनोपार्जन करे तो वाह वाह ! हम कभी भी डाक्टर के चरित्र का पता नहीं करते ,बस इलाज अच्छा हो . फोर्टिस, अपोलो, मैक्स के मालिको चरित्र दर्पण अपने पास नहीं होता .वैसे भी पब्लिक के लिए पब्लिक की बात ,पब्लिक का सर्वे , पब्लिक का दर्द पब्लिक के मरहम के लिए ,पब्लिक को पब्लिकली दिया !

कार्टूनी आरक्षण !

उस रोज कपिल जी को देख के हैरानी हुई ! लड़की के पिता की तरह सब कुछ दे के, बिना किसी गलती के लड़के वाले से माफ़ी माँगने जैसा ! शिक्षा में ,नौकरी में चलित आरक्षण क्या कम है ? .'समझदारी' में भी आरक्षण देना आग से खेलने जैसा है ,कपिलमुनि ! जिस वोट के लिए घुटने टेक रहे है वो पिछले १५ -२० साल से सरकार का पैर तोड़ के बैसाखी थमाए हुए है .कार्टून को समझाने की जरूरत थी न कि समझदारी में आरक्षण की !

कामना है तेरी जय की. विजय की !

परिणाम का मौसम है ,जिन बच्चों को परीक्षा का फल नहीं मिला होगा वो गहन निराशा में होंगे .मिल रही सांत्वना कम पड़ रही होगी जबतक माँ-पिताजी से सांत्वना जबतक मिले नहीं तबतक छटपटाहट कायम रहेगी .आंधी तूफ़ान की तरह असफलता दिल से दिमाग तक को झकझोर रही होगी.आंधी में बिजली काट दी जाती है.पर बहुत से अभिभावक सफल बच्चे का फोटो ,उसका रैंक ,उसकी लचर आर्थिक स्थिति की बखान करते नहीं थकते .चर्चा में तुलना होता है .जो आंधी में बिजली सप्लाई जैसा ही है .तार टूटेगा ,गिरेगा ,किसी की जान ले लेगा ! उसकी आंधी थमने दीजिये तब चिराग जलाइए .एक रास्ता बंद हो जाने भर से यात्रा बंद नहीं हो जाती . रास्ते कई हैं जो मंजिल तक पहुचाती है . नए नए कई रास्ते बने है पर 'राही' नहीं रहेगा तो रास्ते किसलिए ? मनोबल तोडिये नहीं बढाइये . चुके हुए ! आगे तेरे से कोई चुक न हो , कामना है तेरी जय की. विजय की !

गुरुवार, 22 मार्च 2012

'मौजे के मौज' !

आज अपने राज्य का जन्म दिन है .सौ साल के हो गए बाबा बिहार .हर साल को नया करता गया .जनता से ही सरकार में आते हैं लोग .जिन्हें प्रदेश से देश से लगाव रहा,वो इसके रख रखाव में कोई कसर नहीं छोड़े . देश गुलामी की मार से पस्त था तब हमारा सहयोग जबरदस्त था .त्याग में, पांडित्य में, आतिथ्य में, सेवा में, संघर्ष में आगे ही रहे .जो गलत राजनीति की उपज थे ,वे अपच ही रहे .हवा की दिशा होती है आंधी की नहीं कुछ लोग जो परिवर्तन की आंधी में उड़कर आये उन्होंने गन्दा किया लोगों ने सफाई की ,डंडा किया उन्हें ! जनमानस बहकावे में आराम तो कर लेता है पर भूखे नहीं रह पाता .अपने हिस्से की आखिरी रोटी भी कोई क्यों दे?बगल में मलाई कोप्ता, मलाई पान चले और इधर दिमाग भी न चले .शैतानी दिमाग थाली छिनने की नीति पर राजनीति की ,मानवी दिमाग अपनी थाली सजाने का'राज'जाना !'नीति'बनाई ! तो प्रीत की रीति चल निकली .
गाँव में मौजे सहनी का बेटा ,हजारी लाल अपने चाचा के सहयोग से पांचवी तक पढ़ने के कारण जातिगत पेशा ,मछली पकड़ने से मुक्त रहा पर बाप द्वारा पकडे गए मछली की बिक्री पर बड़े परिवार का गुजारा संभव नहीं था . मौज करने का उपाय सोचता गया मौजे का बेटा ! कुछ पैसे का जुगाड़ किया पान की दूकान खोल ली ,हँसते हुए उधार में ग्राहक के मुंह के साथ दिल रंगता रहा . पान ने चाय की दुकान और फिर नास्ते की दूकान खोलवा दी आज मौजे ३० साल से अपने तीनो बेटे के साथ खुद भी काफी व्यस्त है ,दुकान ही नहीं पैसा भी संभाल रहा है .
तरक्की के बीज तब डाले गए जब लालू बिहार का खेत नहीं फसल जोत रहे थे . मौजे की थाली में मोटा मलाई होता था १९९०-९२ में .उसकी थाली में 'छाली' किसी राजनेता या पार्टी की नीति ने नहीं डाला .तो किसी राजनितिक फैसले या नीतिगत फैसले से वो इस सुविधा से वंचित भी नहीं रहा होगा .1996 से गाँव की हर बेचीं जाने वाली जमीन का सशक्त ग्राहक भी बन गया है .व्यक्ति प्रगति करेगा , समाज प्रगति करेगा . सरकारी नीति चाहे जो भी हो व्यक्ति को साफ़ नियत से बनाई अपनी नीति पर चलनी चाहिए . साफ़ सड़क पर चलिए . पर ये न कहिये कि ये नितीश जी की है ,क्योंकि वो भी नहीं कह रहे कि ये केंद्र की है .झूठे से भी सत्य बोलिए ! मैंने आपके दिए अनुभव के आधार पर फेस बुक पर लिखा था -
अपनी सोच की दिशा ही दशा बदलती है सरकार अपनी रोटी सेकती है ! पर ३० साल पहले की मौजे की थाली निकला . सुखी रोटी , चार फांक आलू , पकाया लाल मिर्च .पर सबकी 'थाली में छाली' की मंगलकामना के साथ ! बिहार पर असीम गर्व है ! 'मौजे के मौज' पर भी !