{ये मर्माश्पर्शी रचना मेरी नही,मैंने तो इससे गबन किया है। मध्यप्रदेश के कवि श्री ॐ व्यास जीं को इसका पाठ करते देखने और सुनाने का सौभाग्य प्राप्त कर चूका हुईं।कविता प्रस्तुत करने कि शैली इतनी जबर्दस्त थी कि एक भी आदमी ऐसा नही था जिन्होंने अश्रु-सुमन अपनी माँ के लिए अर्पित ना किया हो.लगभग १०००० पब्लिक के बीच सहरास्री,स्वप्न रोय जीं,सुपर स्तर अमिताभ्बचन,जाया बछां,अभिषेक बछां,
जाया परदा,अमर सिंह,मुलायम सिंह यादव,कई आईएस,इप्स ने भी अपनी भावना को रोक नही सके थे.लगातार उनके कपोलो पर आंसू अपनी उपस्थिति दर्ज कर रह था.आप भी भावनाओं मे गोटा लगाए और आशु अर्पित कर ले, मन तनाव मुक्त हो जाना चाहिऐ.}
माँ - माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है।
माँ - माँ जीवन में खुश्बो के,फूलो का वास है.
माँ - माँ रोते हुए बचे का खुशनुमा पलना है .
माँ - माँ मरुअस्थल में नदी,या मीठा सा झरना है
माँ - माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है.
माँ - माँ पूजा कि थाली है, मंत्रो का जाप है.
माँ - माँ आंखों का सिसकता हुआ किनारा है.
माँ - माँ गालो पर पप्पी है, ममता कि धारा है .
माँ - माँ झुलसते दिलो में कोयल कि बोली है .
माँ - माँ मेंहदी है,कुमकुम है, सिन्दूर है,रोली है.
माँ - माँ कलम है, दावत है, स्याही है.
माँ - माँ परमात्मा कि स्वयम एक गवाही है.
माँ - माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ - माँ फूक से ठंडा किया हुआ कलेवा है
माँ - माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है
माँ - माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है
माँ - माँ छुरी वाले हाथो के मजबूत कंधो का नाम है.
माँ - माँ काशी है, काबा है, और चारो धम है.
माँ - माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है.
माँ - माँ बच्चे कि चोट पर सिसकी है.
माँ - माँ चूल्हा, धुआं, रोटी और हाथों का छल है.
माँ - माँ जिन्दगी के कर्वाहत में अमृत का प्याला है.
माँ - माँ पृथ्वी है, जगत है, धुरी है.
माँ - माँ बिना ईस सृस्ती कि कल्पना अधूरी है.
---- ॐ व्यास