कब जननी का जन्म हुआ मालूम नहीं. जन्म दिन शुरू से प्रचलन में रहा नहीं .पर पुण्यतिथि की परम्परा संस्कृति में रची बसी है . कल्ह माँ की पुण्यतिथि थी .कल्ह के दिन ही माँ अपना आँचल मेरे सर से समेट ली थी .हमउम्र की माँ क्या दादी अभी मौजूद है, ये उनका सौभाग्य ! मैं अक्सर उनमे माँ तलाशता रहता हूँ झलक मिलती है कभी कभी . दर्द ,मुस्कान तैरता है, उतराता है फिर डूब जाता है . काश ! इश्वरिये संविधान में माँ के जाने पर प्रतिबन्ध होता . माँ को 'माय' कब और कैसे कहा अभी समझ में आ ही रहा था कि....
माय को 'आप' कहते कहते 'तुम' कहना कब और कैसे शुरू किया याद नहीं. रिसर्च का वक्त था ,पिताजी क्यों शुरू से अंत तक ''आप " रहते हैं ,माँ क्यों 'तुम' का सफ़र सुहाना समझती है .फिर से आप कहने का मन था ."आप -तुम -आप" की धुन पर लय देने की चाह , डाह दी गई . 'आप' से 'तुम' तक स्वर साथ दिया 'आप' तक आते आते टूट गया ,बिखर गया स्वर के साथ सब कुछ .क्योंकि माँ धुरी थी .
माँ तुम माँ हो ! केवल माँ हो !! क्यों मैं बहुत बार कहता था . माँ परेशां हो जाती थी सुनकर .
जो है हमारे पास वो दीर्घकाल तक रहेंगे ,ठोस हैं , अविनाशी हैं का भ्रम , हमें हर पल को संजीदगी से जीने नहीं देता,उपयोग ,उपभोग नहीं करने देता .
"न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो ,हर एक पल की ख़ुशी को गले लगा के जियो ! " योजना को तत्काल आकार दिया जाना चाहिए .
फोटो में है माँ अब , दोनों फोटो में माला पहनी हुई है . एक में मुस्कुराती "माय" है , दुसरे में उदास "माय "!
दोनों फोटो कुछ-कुछ बताने समझाने में व्यस्त रहती है .
सोमवार, 29 अगस्त 2011
सदस्यता लें
संदेश (Atom)