लो विदा अब वर्ष तुम भी ,थक गए हो बहुत चल कर !अब तुम्हारे भार को, नए वर्ष के कंधे मिलेगे/कौन जाने दर्द कितना बांधे जा रहे हो /नए सूरज को नयन की रौशनी दिए जा रहे हो /अब तुम्हारे साथ के पल ,आँख मे बन गए काजल .
साल २००७ से क्या शिकवा ? हमने इस साल को दिया क्या है जो इससे न मिल पाने का दुःख जताया जाए .अपने तयशुदा समय [३६५] दिन मे समाप्त होना था . हो गया . ये भी एक जनवरी २००७ को नया था . ३१ दिसम्बर आते आते बूढा हो जाना तय है मैं नही मानता .समय हमेशा जवान और तन्दुरस्त रहता है . नए लिबास मे सज कर कल्ह फ़िर नया होकर आना के लिए जाता है . हम अपने सड़े गले , उधार की सोंच लेकर ब्लोगर बन अपने को लिखाऊ कहते रहे . नजरिया नही बदला .नया साधन पुरानी मनोवृति . कुछ नया नही करने का है . पुरातन से अच्छाई बटोरकर , पुरातन की बुराई को दफनाया जाए .पुवार्ग्रह से परहेज की जरूरत है . सुधार का सुझाव परोसा जाए . अभी तक उलझाव दर्शाया गया. पढे लिखे मूर्खों का जमावाडा ब्लॉग पर पाये गए .समय तुम्हे विदा कैसे कहूँ .हाँ ये साल तुम्हे विदा कहता हूँ , तेरा ये नया रूप परिवर्तन, कर दे हमारा ह्रदय परिवर्तन !
सोमवार, 31 दिसंबर 2007
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
"ला बुढिया गडास {गडासा} आज खून के नदी बहा देबउ !
कहानी सत्य घटनाओ पर आधारित होते हुए भी स्थान, काल ,पात्र काल्पनिक है . किसी व्यक्ति विशेष स्थान विशेष से मेल खाता हो तो स्तंभकार पर सॉरी बोलने का दवाब नाही बनाया जा सकता है .गलती वश ये मनोरंजन का साधन बन गया है .समाज मे ये परम्परा पुरातन है कि एक डॉक्टर आदमी डॉक्टर दामाद चाहता है .इंजिनियर , इंजिनियर दामाद को प्रोफेशनल , प्रोफेशनल को . ठीक उसी तरह एक लम्पट, लम्पट ही पसंद करता है . गरम दल का लीडर ''अंग्री यंग मैन '' दामाद चाहे तो हमे बुरा नही लगता . इसी परम्परा के तहत बिहार के किसी गाँव के " कुटाई समिति के अध्यक्ष " महोदय की शादी तय हुई . क्योंकि लड़कीवाले पुरुषार्थ प्रेमी एवं "अवकाश प्राप्त मुख्य सचिव ऑफ़ कुटाई समिति थे.चूकि दोनों पक्ष गरम दल से तलुकात रखते थे इसलिए बाराती साइड किसी भी संभावित खतरे से निपटने के लिए "लाठी डंडा'' या फ़िर बिहारी भाषा मे "दुःख हरण " का भरपूर इन्तजाम परंपरागत रूप से किया गया . अब "मोहबिया " की बारात निकली .आज की तुलना मे पहले समय की कमी नही होने से बारात दो तीन रोज टिकती थी .यह बारात दो दिनों वाली थी . पहला दिन मोटे मोटे गर्दन पर पुता पाउडर, सिल्क का कुरता धोती को निहार कर शुभ शुभ बिताया गया . आम तौर पर शादी के नेक्स्ट डे यानी "मर्याद " को मारपीट की ज्यादागुंजाइश रहती है . इट इज फुल्ली डिपेण्ड अपोन अ माइनर मिस्टेक बाई ब्राइड साइड. जैसे :-दुल्हे के चचेरे, ममेरे , फुफेरे , मौसेरे बहनोई या फूफा जी मी से किसी एक को "धोती " न देना , रात्रि भोजन मेकम सम आइटम का होना , या फ़िर सुबह का नास्ता मे थोड़ा सा बिलंब . बहाने कई होते हैं स्थिति को तनावपूर्णबन्नने के लिए और ये नियंत्रण मे तबतक बनी रहती है जब तक बेटी वाले का अनुग्रह विग्रह मे कनवर्ट नही हो जाता . बस ऐसा ही कुछ घटित हो गया इस बरात मे भी . मेम्बेर्स अपनी-अपनी काबिलियत के हिसाब से डंडा निकाल कर Dantlation" की क्रिया मे लिप्त हो गए .मतलब की सम्भावना को सत्य मे परिणत किया जाने लगा . धड़ ! पकड़ ! मार सार के ! जैसे शब्दों का प्रयोग साथ-साथ चल रहा था . " कहा जाता है कि मारपीट के वक्त ये शब्द प्रयोग काफ़ी जोश पैदा करता है " स्थिति नियंत्रण से आउट तब हुआ जब समधी साहेब का सर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया .दुल्हे राजा मडवा पर बेखबर हो चचेरी, मौसेरी,फुफेरी ममेरी साली सरहज के साथ " रस मन्जरी" कार्यक्रम के तहत रंग जमाये हुए थे. रिपोर्ट आयी " बरात मे तो गजब हो गया लोगों ने तो समधी साहेब को पिटाई की रस्म पुरी कर दी ". ये ख़बर वीर रस के उपासक दुल्हे सरकार को तत्काल श्रृंगार रस त्यागने को मजबूर कर दिया .फालतू का एक धोती जो कंधे पर सुदामा जैसी चावल गठरी संभाले होती है, उतार फेंका . और ओरिजनल धोती को भी "डिस टरविंग एलेमेंट्स " समझते हुए ऊपर खोंस कर लंगोट का रूप देने का असफल प्रयास किया . आइज हैड गोन रेड , ब्रेथिंग वेयर फास्ट . इट मिंस दहशत का माहौल ." मोहबिया " को किसी खास की तलाश थी ,जबकि पुरी तरह वो एन्ना, मीना, डीका,रीता, फीता ,रीना , जीना जैसे सालियों से घिरा था . बट दैट टाइम्सही वांटेड टू मीट हिज सास फॉर आस्क " हथियार" . एट लास्ट ही गोट हर , एंड वेंट फास्टली टू सास पास एंड चीख कर बोला :- "ला बुढिया गडास {गडासा} आज खून के नदी बहा देबउ ! और कूद पड़ा मैदाने जंग मे .
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