गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
"करारा जबाब "
बुधवार, 3 दिसंबर 2008
बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ !
देखिये ! आप देख सकते हैं ! आप देख सकते हैं कि कैसे हम अपनी जान पर खेल कर आपको वह सब कुछ दिखा रहे हैं जो आप घर बैठे देख रहे हैं.जो आप देखना नही चाहते वो भी दिखाने को हम मोर्चा खोले बैठें हैं. इस देश का हम चौथा स्तभ हैं ,और जब स्तभ जमीं पर लुढ़क -लुढ़क कर मजबूत आधार दे रहा हो तो खतरों के निशान से ऊपर खतरा बह रहा है .ऐसा समझा जाना चाहिए . हम आपको बता दें कि वही सबकुछ हम अभी तक दिखा रहे थे जो आप आँख बंद करके देखना चाहा था .अब बात अलग है कि अभी सेना -पुलिस के मना करने पर वो सब कुछ हम नही दिखा पा रहे जो मेरा कैमरा अभी भी देख रहा है .हम नही चाहते कि आतंकवादी को हमारे जरिये कुछ मदद मिले .हम सेना पुलिस के साथ हैं हम उनकी कारवाई में खलल नही डालना चाहते. इसलिए लाइव दिखा कर आतंकी का लाईफ नही बढ़ाना चाहते.हम आपको साफ़ कर दें कि फिलहाल न तो हम "सबको रखे आगे " टी.वी. न "सबसे तेज टी.वी.'' हैं हम आपको बता दे फिलहाल दिल में इंडिया लिए मचल रहा हूँ मन तो कर रहा है कि सूचना के अधिकार के तहत आपको वो सब दिखा दूँ .पर ऐसा मैं नही करने जा रहा . हम आपको बता दे कि केवल दिखाने को मना किया गया हैबताने को मना नही किया गया है . हम आपको वह सब कुछ बताते रहेंगे .जो हम और हमारे कैमरे देखते रहेंगे. पर दिखायेंगे नही . जो दिखाया गया वो अनजाने में गलती से मिस्टेक हो गया. हम आपको बता दे कि हम “लाईव” नही दिखाते तो हमारे "फाइव" नही जाते . फाइव कहीं फिफ्टी न हो जाय इसलिए दिखाना बंद . हम आपको साफ़कर दें आतंकवाद से भिड़ने के तरीके में लोकतंत्र का हर स्तम्भ का मिस्टेक ,एक दुसरे के मिस्टेक को ओवरटेक करता गया है. हम आपको बता दे कि मिनट से ही घंटा बनता है . मेरे दिखाने से ५९ मिनट का काम ५९ घंटे तक चलेगा . पर आपको हम यकीं दिलाते हैं कि हमारा कैमरा नही चलेगा.आप देख सकते हैं कि अपने जांवाज कमांडो चारो तरफ़ से घेरे खड़े हैं .निचे कहीं आतंकी उतरे तो रेपिड एक्शन फोर्स के गोली का शिकार बनेगे , उनसे बचेगे तो ऐ टी एस ,ऐ टी एस से बचेंगे मुंबई पुलिस कि गोली से बच नही सकते .मतलब कि आतंकी पुरी तरह घिर गए हैं. गोलिया मेरी जुबान से भी तेज चल रही है . दहशत का माहौल हैदेखिये फ़िर से दो ग्रेनेड फेंक दिया है .एक कमांडो बुरी तरह घायल हो गया है अम्बुलेंस बुलाया गया है. देखिये ये सब हम आपको इसलिए नही दिखा रहे हैं कि हम नही चाहते कि आतंक का सहयोग हो. हम आपको बता दे आतंकी को लगातार फ़ोन पर पाकिस्तान से गाइड लाईन मिलने से आतंकी को लगातार लाईफ लाईन मिलती जा रही है .केवल दिखाने से ही उनकी मदद मिलेगी आंखों देखी बताने से मदद नही मिलती है सो हम बताये जा रहे हैं. लेट लेट कर , भाग-भाग कर .ये बात अलग है कि हमारे ऊपर भी ग्रेनेड दागे जा रहे हैं हमें उसकी परवाह नही है .हम सेना का मनोबल बढ़ने में विश्वास रखते हैं. अब ये अनुभव हर लड़ाई को लाईव करने में काम आएगा . देखिये पहले कमेंट्री रेडियो से होती थी अब टी.वी. पर प्रसारण होता है .हमारी टी.वी. को कभी मौका मिलता नही क्रिकेट मैच दिखाने का ,हमेशा सौजन्य से काम चलाता रहा , कोई फ़िल्म वाला अपने फाइटिंग सीन को कभी कवर नही करने दिया .वैसे आप सभी की इच्छा पूर्ति प्रतिबन्ध से पहले कर चुका हूँ .हम इनके प्रतिबन्ध को अनुबंध मानता हूँ .आप संयम और धैर्य धारण किए रहे क्योंकि हम इस बीच एक भी विज्ञापन तो दिखाया नही. फ़िर कहीं जाने की जरूरत नही है ,बने रहिये हमारे साथ . देखिये हम धैर्य और संयम के संगम में डूबे उतावले होकर जिम्मेवार मिडिया दिखाने में कोई संयम रख नही पाये हाँ अलबता देश के दुश्मन को आदर सूचक शब्द से नवाज़ते रहे .मतलब भाषा पर संयम कायम था .हमने आतंकवादी के लिए "वह " की जगह "वे" "ग्रेनेड फेंक रहा है " की जगह "ग्रेनेड फेंक रहे हैं." बोलता रहा .आप देख सकते है न्योता देकर बुलाने के बावजूद दो आतंकी और १०० अपने के ढेर होते ही "रद्दी रिजेक्टेड पाटिल " भारत माता की जय बोल रहे हैं ,जबकि ये अधिकार अबतक भाजपा अपने कोटे का समझ रही थी.उनके मुस्कान से लबरेज जयकारा से आगे की लड़ाई में जीत हाशिल हुई .जितने नेता आते गए अपने थोबडा दिखाने हम आपको दिखाते रहे . कल्ह हम फ़िर दिखायेगे जो सिर्फ़ हम दिखा सकते हैं.अपनी फजीहत कोई और न करे इसके लिए हम आपके सहयोग से नेताओं को कल्ह तरीके से घेरेंगे . हम लगातार ५९ घंटे तक बक-बक करते रहे .पर उनके एक लाईन से उनको लाईन हाज़िर करवा देंगे. आप देख सकते हैं कि क्या हमने जुगाड़ लगाया हैं ,कल्ह आपके घर आऊंगा ,आपको रास्ते में रोक कर पूछूँगाकि कैसा लगा मेरा हिम्मत से भरा लाईव दिखाने की हिमाकत .अंत में हम आपको बता दें . हम चौबीसों घंटे तीन पाँच करते रहते हैं . क्या दिखाया जाय क्या नही दिखाया जाय उसकी समझ न होते हुए भी लोकतंत्र का सबसे समझदार स्तभ का तगमा अपने गले लटकाय रहता हूँ. और आपको हम ये भी बता दे कि ये देखने की चीज थी इसलिए ही बार बार दिखाया गया ,लगातार दिखाया गया । हर बार यह अपराध हमसे हो जाता है । आपकी नज़रें वो सब कुछ नही देख पाती जो मुझमे समाहित है .
और अंत में आपको साफ़ साफ़ बता दूँ जो हमने दिखाया वो आप आँख बंद किए हुए भी देख सकते थे .महसूस सकते थे.
गुरुवार, 17 जुलाई 2008
माँ और भूख !
दालान पर , कल्ह कादिरी मियाँ से संक्षिप्त मुलाकात का नतीजा है कई शेर अपनी यादों के जंगल से छोड़ गए मियाँ . इन दो के अतिरिक्त सब मेरे शिकार बने .और मैं इनका शिकार हुआ .दम है क्या इनमे ?
"एक निवाले के लिए मार दिया जिसको हमने ,
वो परिंदा भी कई रोज का भूखा निकला / "
" पत्थर उबालती रही एक माँ तमाम रात ,
बच्चे फरेब खाकर ,फर्श पे सो गए /
गुरुवार, 3 जुलाई 2008
अच्छा लगता हूँ !
दर्द जो सीने से उठकर, चेहरे पर गिरती है।
रखके उनके लबों पर उनके हिस्से का मुस्कान,
जो ख़त्म न हो इन्तजार उसका शौक पाला है ।
व्यस्क हो चले ज़ख्मी दिल का खुराक भी बढ़ा है।
सोमवार, 9 जून 2008
मेरे मन के तार !
सन् १९८४ मे मेरे मन की बात कागज़ पर उतर आई थी ।आज अचानक, न जाने क्यों ब्लॉग पर उतरने को बेताब दिखी । पर मैंने इसे ब्लॉग पर उतारा नही, चढाया है ।
कुछ तार मेरे मन के उलझे हुए है /
कुछ सार इस बात के सुलझे हुए हैं //
रोशनी मिली तो उठाई न नज़र /
अब तो सारे चिराग बुझे हुए हैं //
कुछ तार मेरे मन के ........
।दुखाया है बड़ी बेरहमी से तेरा दिल /
एहसास इस बात के अब मुझे हुए है //
कुछ तार मेरे मन के .........
किस कदर दूं उस जख्म पे मरहम /
जो जख्म मेरे घात के तुझे हुए है //
कुछ तार मेरे मन के .........
शनिवार, 5 अप्रैल 2008
कम्बल ओढ़ के हम घी पी रहें है या पानी ?
मेरे टाइप के लोगों को "मोदी" मे "मद" और "बुद्धदेव" मे "मध"[शहद ] नज़र आता है .प्रगतिशीलता के नए मापदंड [-अपने "शील" को प्रगति देकर यानी चलायमान रख कर विरोधियों की प्रगति को येन केन प्रकारेण "सील" करना ] पर बिल्कुल खरा उतरने को आतुर एक पत्रकार ही तो हूँ . " रेड लेबल " के पत्रकार कहलाने के लिए क्या-क्या न किया कथित उच्चे कुल मे जन्म लेकर , अपने कुल सहित समस्त उच्चे कुल को गालियों और गोलियों से रौदता रहा रौदवाता रहा .इस तरह सामाजिक न्याय दिलाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया .पत्रकार की कोई जाति नही होती ,धर्म नही होता उपर्युक्त बातों से साफ हो गया होगा . अब पत्रकारिता की कोई सीमा नही होती इसको भी साफ कर ही दूँ .मैं बिहारी बिहार से चला .मात्र १८-२० घंटे की यात्रा ने बिहार को भुला देने मे मेरी मदद की . दिल्ली से दूर तक देख पाने की शक्ति मिली . नक्शे पर समूचा हिंदुस्तान क्या चीन, रूस देखता रहा .चीनी रूसी लेखक के अलावा अपने टाईप के धर्मनिरपेक्ष के धर्म गुरुओं का किताब चाटते रहे .अध्ययनशील रहने की बीमारी से ग्रषित हो जाने के कारण आंखों की नजदीकी नजर जाती रही दुरी का विस्तार मेरी सीमा का विस्तार करता गया . बंगाल की करतूत हमे तबतक नही दिखाई देती जबतक की वहाँ कांग्रेस या भाजपा न आए . मोदी को देख सकता हूँ पर उसकी अच्छाई धुधला दिखता है , और उसकी बुराई थोड़ा सा भी दिखे तो परिमार्जन विद्या से पहाड़ मे परिणत कर देने मे ज्यादा टाइम नही लगाता . और बिहार का क्या जहाँ सांप्रदायिक ताकत से मिलकर सरकार चलाने वाला नीतिश को पहले सड़कछाप मुख्यमंत्री बता दिया गया है . बाढ़, सूखा ,अतिवृष्टि का दंश झेलता चार बीघे जमीन वाले को माओवादी के धमकी भरे पत्र को प्रेम-पत्र से ज्यादा कुछ मैं नही समझता . जातिवाद का जहर कम न पड़े इसका प्रयास हमे जारी रखना है अपनी खोजी पत्रकारिता के तहत .क्योंकि इधर मैंने देखा है उच्च जाति ने छुआछूत को छू भी नही रहा . पढे लिखे साफ सुथरे दलित ,अर्धदलित के साथ आम सवर्ण भी घुलनशील होता जा रहा है , ठीक मेरी तरह . ये सर्वाधिक चिंता का विषय है मेरी और मेरी विचारधाराओं के लिये . ख़ुद को मैंने कई बार मार कर खबरों का खुदा बनने की कोशिश की .गिनिए कितनी मौत मरा हूँ ,कितनी बार अपने आपको मिटाया हूँ . अपने सरनेम को मिटाया , अपनी जाति मिटाई , अपना हिंदू धर्म मिटाया , अपना प्रान्तवाद मिटाया . फ़िर ये कुछ सामंतवादी लोग मेरे धर्म और निरपेक्षता मे फासला कायम करना चाहते हैं .कितनी ग़लत बात है ? है कि नही ? अरे साहेब इसीलिय सलमा आगा के दुःख के बराबर मेरा भी दुःख है ."ख़ुद को भी हमने मिटा डाला मगर , फांसले जो दरमिया से रह गए ." खैर कम्बल ओढ़ के हम घी पी रहें है या पानी ? ये हमारे साथी को पता चलेगा तभिये न दुरी बढायेगा .अभिये से बुरबक की तरह तनावोचित बिहेवियर सर्वथा अनुचित है .
गुरुवार, 3 अप्रैल 2008
दवा का दबदबा !
SBUs
Alkem operates in the Indian market through 7 focused SBU’s.
Main Pharma divisionBergenUlticareMedivaCytomedPentacareFutura (Generics)
Whilst the main Pharma Division, Ulticare and Bergen, are the main revenue generators, the newer specialty divisions, Pentacare (Neuropsychiatry), Mediva (Cardio - Diabeto) and Cytomed (Oncology), are growing very rapidly and are enhancing their market share in the chronic segment space with a wide range of products in their respective categories.
Field Force
Alkem has deployed a massive field force of 2800 people to promote its products to a target group of 35% of the total population of doctors, covering areas from the metros to the rural markets across India and Nepal
Distribution
Alkem also has one the largest logistic network distributions set up in India, covering each state. Alkem distributes its products through 20 depots and C and F agents along with a network of 6500 stockists . The company covers almost 40% of the retail pharmacy in India
Inlicencing
Alkem has successfully inlicenced several patented molecules from international companies vis Oxum (Oculus Innovative Science, USA), Cytobrush (Cooper Surgical, USA), Pycnogenol (Hor Phag, Switzerland) etc. Many more inlicencing deals are at advanced stages of discussion, encompassing several therapeutic groups.
JUST IN
Shri Samprada Singh's budget expectations report has been published on the following portals.
शनिवार, 29 मार्च 2008
हां रे बेटा ऐसे ही पढ़ना
करण का तीर निशाने पर था . करण से ज्यादा खुश उसकी माँ थी हवा से तेज गति मे बेटे को इंग्लिश पढता देख माँ पूर्ण संतुष्टि मे बोल गई " हां रे बेटा ऐसे ही पढ़ना नही तो बापवा काटिए के रख देगा . अभी लेके आते हैं लेमनचुस ". करण अपनी जीत पर बिखरे होठ को खैनी से सम्मानित करना उचित समझा . अंततः सेठ हीरालाल का बेटा तीसरे साल मे व्यापक पैमाने पर नक़ल की व्यवस्था के तहत मैट्रिक कर ही गया .जवाहर लाल तो नही बेटा आज केवल हीरालाल है . विरासत की दूकान सम्भाल रहा है.
शुक्रवार, 28 मार्च 2008
दो रुपये की शिक्षा !
प्रखंड के आहाते मे ही साहेब का आवास था .मैं आवास तक पीछा करते हुए असफल रहा .साहेब खाना खाकर विस्तर पर पसरे ये ख़बर उनकी धरम पत्नी जी ने दी मैंने मौका गवाना उचित नही समझा तुरंत गृह मंत्रालय मे गुहार लगा दी ,दोनों हाथ स्वतः जुड़ गए .ऑफिस मे ही इन्तेजार करने का निर्देश मिला .पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए आगे बढ़ता रहा .न जाने क्यों विश्वास था की आवाज़ देकर या फ़िर इशारे से हमे बुलाया जाएगा .विश्वास को क्या है ये तो मरुस्थल मे भी उग जाता है . बहुत तरह के भाव चहरे और मन को बारी-बारी से कब्जाये जा रहे थे . मैं भी कुछ खा पी कर नए सिरे से काम निकालने की जुगाड़ मे पूर्व मे सुने सुनाये किस्से याद करने मे लग गया . चाचा लोग कहा करते थे "अरे सरकारी दफ्तर मे काम करना हो तो कंजूसी नही करना चाहिए दो रूपया दो काम निकालो अपना" .ऑफिस के दूसरे सत्र मे मैं अपनी कंजूसी को तिलांजलि देने को तैयार था दो रुपये की नोट को मुठ्ठी मे दबाये पुनः दरवार मे हाज़िर था . बाहर स्टूल पर बैठा चपरासी कुछ राशि चपत करने की गरज से हमे काम करवा देने का पक्का आश्वाशन दिए जा रहा था .मैं चुपचाप प्रतीक्षारत खड़ा रहा . साहेब आए पुनः अभिवादन करके बिना अनुमति के ही उनके टेबल पर अपना लिखित आवेदन रखा जो वास्तविक आय के ग़लत ग्राफ से ग्रस्त था . क्योंकि बिना ग़लत किए हम लाभ की प्राप्ति कर लें ऐसा कम ही अवसर होता है .सरसरी निगाह के बाद उनका "ये नही हो सकता ." वाक्य मुझे हिला कर रख दिया . अनुनय विनय के जो भी शब्द मेरे विनय पत्रिका मे थे परोसता रहा . असफल रहा . अंत मे मैंने ब्रम्हास्त्र फेंका जो तब से मेरी मुठ्ठी मे दबी पड़ी थी . मैंने सहज भाव से दो रुपये का नोट समर्पण करते हुए कहा सर इसे रखिये और मेरा काम ...रे बलैया ! साहेब तो ऐसे उछले जैसे दो नंबर के पैसा को कभी हाथ लगाया ही न हो बोला " सीधे गेट आउट " आउट ! पुलिस बुलाओ ! बंद करो ! " साहेब को और नोट का लोभ देने की पेशकश करता इससे पहले दो किरानी और दो चपरासी मझे गिरफ्त मे ले चुका था . दोनों साइड से दो दो हाथ मेरे दोनों हाथ को काबू मे किए हुए बाहर लाया कारण दो रुपये का नोट . क्या हुआ जो साहेब भड़क गए सबका एक ही सवाल था जबाब मैंने सही सही बता दिया .सबने कहा बहुत बड़ी गलती कर गए अब सजा मिलेगी . किसी ने माफ़ी मांग कर निकल लेने की सलाह दी . मुझे मुझमे गलती दिख ही नही रही थी .लो दो का सिधांत तो हर सरकारी दफ्तर मे मान्य है ऐसा समझा गया था .
कुछ देर बाद साहेब के निदेश पर साहेब के समक्ष उपस्थित हुआ .बदले से सरकार नज़र आए . आत्मीयता से बैठाया ,घर परिवार, शिक्षा -दीक्षा के बारे मे पूछते गए . अंत मे दो रुपये की कथा जानना चाहा , बताया दिया सही सही . जोर से हसते हुए कहा तुम पहली बार किसी सरकारी दफ्तर मे काम ले कर आए हो ? मैंने हाँ मे सिर हिलाया .मुझे जिस प्रमाण -पत्र की जरूरत थी वो उनके हस्ताक्षर का श्रृंगार कर चमक रही थी . साहेब ने दो रुपये की जो शिक्षा मुझे दी उसका उपयोग सरकारी दफ्तर से काम निकालने के लिए प्रयार्प्त साबित हो रहा है . वो दो रुपये लौटा कर , दो या दो सौ रुपये देने का सम्माननीय तरीका बता गए . वापस घर पहुचकर खुश होते हुए सबको बताया तो जबाब मिला बच गए मूर्ख .थेओरी और प्रैक्टिकल मे काफ़ी अन्तर होता है .
बुधवार, 30 जनवरी 2008
पेट मे नौ टन पीठ पर दस टन !
परिचयात्मक उक्ति :-[१] " ये उस देश की गाड़ी है जिस देश मे गंगा बहती है " [२ ] रोड किंग [३] बादशाह
सकारात्मक उक्ति :- [१]"कर्म ही पूजा है ."[ २] अनुशासन ही देश को महान बनाता है [३]" काम अधिक बातें कम "[४] इमानदारी एक अच्छी नीति है .[५] दुल्हन ही दहेज़ ."
दंडनात्मक उक्ति :- "बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला " कुछ संदेश ,निर्देश कोमल उदंडता का परिचय देता हैं जैसे " बजा हौरन , निकल फौरन " जगह मिलने पर ही पास दिया जाएगा " मैं तो यूं ही चलूँगा "
कुछ वजनात्मक लेकिन फूहड़ता लिए " चाचा नौ टन चाची टनाटन "
चालक की खिड़की पर "पायलट" के अलावा दर्द भरे शेर भी लिखा होता है जो मजबूरी मे घर परिवार से दूरी को दर्शाता है पहली पंक्ति याद नही रहा दूसरी पंक्ति ऐसे है " किस्मत ही ऐसी पाई है कि हर वक्त सफर मे रहते हैं ".
इन सब के आलावा और कई संदेश होते है जो कुछ तो मालिक के निर्देश से उकेरे जाते होंगे और कुछ चालक, खलासी, और पेंटर के योगदान से सम्भव हो पाता होगा .ऐसा संदेश की रुपरेखा और प्रकृति को देखकर महज अंदाजा है मेरा . चालक ,खलासी या पेंटर साधारणतः कम शिक्षित होते है ,और अधिकांशतः मालिक भी उच्च शिक्षा धारक नही होते .फ़िर भी कबीर की तरह वो सब कुछ दिए जा रहा है जो हर वक्त हमारे जेहन मे घुसने -घुसाने की तड़प लिए होता है .
क्या इसका असर कहीं दिखता है ? कोई पढ़ता भी है ? या पढ़कर सब ऐसे ही बकवास है कह जाता है ? नही भाई
ये पढ़ा जाता है ,मनन किया जाता है ओर मिट या अमिट असर भी कर जाता है . मैंने तब जाना जब कहीं किसी
दहेजलोभी से बहसबाजी के क्रम मे अपने सुपुत्र की शादी मे दहेज़ न लेने की घोषणा कर दी . सुपुत्र मानेगा तब न ? तपाक से उत्तर पाकर अपने तेरह वर्षीय पुत्र के मन को टटोलना जरूरी समझा क्योंकि इस विषय पर पिता-पुत्र
संवाद कभी न हुआ था .मैंने कहा बेटा मैं तुम्हारी शादी मे अपार दहेज़ लूंगा ,खूब मौज करूगा ,आह ! बड़ी गाड़ी ,कैश, बड़ा घर पूरी जिंदगी बदल के रख दूंगा देखना ! उसकी पहली असहमति मेरी जीत पक्की कर गई .उसने सवाल किया " पापा आपने पढ़ा नही किसी ट्रक पर लिखा कि दुल्हन ही दहेज़ है " अब संदेश वाहन की जीत भी पक्की न हो गई क्या ? दोहरी जीत आंखों को शुष्क बनाए रखने की ताकत कहाँ रखती है !