मंगलवार, 11 सितंबर 2012
भविष्य पर भरोसा !
महाभारत अपने घर में रखने और रोज पढ़ने वाले पं.शिव मिश्र तीस साल पहले अपने प्रथम पुत्र की शादी तय कर रहे थे /जन्मपत्री और फोटो के सहारे बातें बनती दिख रही थी / अब मध्यस्थ अपने प्रमुख भूमिका में आने को आतुर था 'लेना एक न देना दो' को झुठलाने के लिए'लेन -देन ' का चर्चा धीरे धीरे गरम हो रहा था / कन्या के मैट्रिक होने से, कन्या पिता की आवाज में 'टनक' बरकार था और उधर महाभारत और तमाम साहित्य से बीर ...रस 'चुआ' कर पिए हुए वर -पिता का स्वर कमजोर बैटरी के रेडियो जैसा कभी अप -डाउन जा रहा था /.''ये आप करेंगे ,ये भी आपके ही तरफ से होगा और हाँ ये भी और ....'' ये भी, वो भी'' सुन - सुन के कन्या पिता में वीर रस ट्रान्सफर हो गया / बोल फुट पड़े '' आप क्या समझते है मेरी लड़की मैट्रिकुलेट है !'' ''तो मेरा बेटा बी.ए. बुलेट है '' का जबाब तपाक से पा सहम गए / अंग्रेजी साहित्य से स्नातक पुत्र , गाँव के ड्रामा में कभी चंद्रशेखर आजाद , कभी अभिमन्यु बन जाता था . बाकी नियमतः दोपहर से सूर्यास्त तक का समय ताश के पते के सहारे काट लेता था /.हलाकि बाद के वर्षों में ... चीनी मिल में किरानी होने से किसान का पैसा मारने की आदत के कारण पहले पैसा और बाद में इसका सह उत्पाद 'इज्जत ' कमाया बेइज्जत हो हो के /
भविष्य पर जितना 'भरोसा' 'कन्या पिता' को होता है उतना 'वर- पिता' को शायद ही होता है / बिना 'विनिमय' के 'बाजा' नहीं बजता .' मैट्रिकुलेट , बी.ए. बुलेट के साथ बाँध दी जाती है, समुचित सम्भावना के साथ /
संभावना के दायरे का गठन धुक धुकी से ही शुरू होता है .वैसे सम्भावना तरल होती है ठोस मान लिया जाता है / सम्भावना सत्य भी हो जाता है जो सत्य न हो पाता है वो एक सीमा तक छटपटा कर संतोष को जन्म देता है / पर ये संतोष 'संतोषम परम सुखम! ' को सत्यापित नहीं कर पाता / **************************
बिहार से चला, परम ज्ञानी ननग्रेजुएट दिल्ली आता है ,बिना 'लभे' लाभ कमाया जाय का लक्ष्य लेकर / कम्प्यूटर के शिक्षण प्रशिक्षण पाकर , अपना प्रशिक्षण केंद्र तक का सफ़र पहले मुश्किल अब आराम से तय कर रहा है . ८ लाख का दहेज़ उसे सहेजने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. सफलता का असर 'दिल' से लेकर दिमाग तक सफ़र तय किया लगता है . धरमपत्नी सुन्दर , सुशिक्षित , होने के बावजूद परित्यक्ता की जिंदगी जी रही है माँ बाप ने ८ लाख का विनिमय- वितरण को दोनों पक्षों ने सार्वजनिक किया था / अब सुन रहा हूँ एक कार की मांग का समारोह है जिसमे वो लड़का 'सपरिवार सादर आमंत्रित है '.सुयोग्य कन्या को बेकार साबित करने वाले यज्ञ में वो मध्यस्थ भी शामिल है / कार मिलते ही उस लड़की को सरकार समझने को समझाया जा रहा है कन्या पक्ष को /
उम्मीद से नींद गायब है लड़की का / लेकिन कन्या पक्ष 'चायनीज सामान' की गारंटी चाहता है / ८ लाख का रकम ,सोना देकर जब रोना हाथ लगे फिर ३ लाख का कार कैसे दमदार साबित हो / देना तो पड़ेगा जब सामने वाले को बड़ा माना है तो / माँगना है तो माँ बाप से मांग न ! नहीं तो "रूपं देहि , जयं देहि, यशो देहि द्विषो जहि" गा ले !
मर्यादा समुद्र से बड़ा होता है . हनुमान भी नहीं लांघ पाते / क्या होगा ? माँ जाने !
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