मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009
लगे पचासी झटके !
काबिल कपिल जी को काफी सुधार का काम वाला मंत्रालय मिला. प्रतिशत को ग्रेड में बदलकर अब ग्रेड को प्रतिशत में बदल रहे हैं .फिर किसे सही माने प्रतिशत को हटाने के खेल को या फिर से प्रतिशत को लाने के खेल को ?मतलब प्रतिशत, शत प्रतिशत चलन में रहेगा ही . त काहेला नौटंकी किये पहले ? इ त ठीक वैसे ही न हुआ जैसे गेहूं का दाम कम करके खाद -डीजल का दाम बढा देना .असर कहाँ पड़ेगा ये जनता को बुझने दो . है कि नहीं ?अतः हे कपिल मुनि अपने आश्रम की नियमित सफाई पर ज्यादा ध्यान दे .प्रतिशत- ग्रेड का खेल आप बच्चों परछोड़ दें. वो लोग बढ़िया खेल लेगा .साफ़ साफ़ शब्दों में ये बच्चों का ही खेल है. मुझे मालूम है इसलिए मैं ये थोड़े न पूछूँगा कि आपने ग्रेड ए, में कितने प्रतिशत पाने को शामिल किया है,या ग्रेड बी में कितने ?अंत में कहता हूँ कि ये पचासी झटकना छोडिये .इससे दिल का पुर्जा -पुर्जा हो जा रहा है .
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
आपत काल परखियहूँ चारी !
तुलसी दास जी की कविता की एक पंक्ति याद आ गई .धीरज धर्म मित्र अरु नारी / आपत काल परखियहूँ चारी !
धैर्य अब रहा नहीं . धर्म का साथ देते तो सांप्रदायिक कहलाते सो राज धर्म भी निभा नहीं पाया .मित्र तो नीतिश थे ,सुशील मोदी थे ,जो हमारी हर उटपटांग हरकत पर कभी मुस्कुराते कभी ठहाका लगाते रहे . जन समूह के साथ प्रेस समूह भी हमारे हर जुमले को काफी तरहिज देते रहे . पत्नी जिसे भूतपूर्व मुख्यमंत्री काखिताब जीवनपर्यंत के लिए वो भी अब मेरे साथ ही धैर्य को तिलांजलि दे दी . पहले बोल ही नहीं पाती थी .अब अटर-पटर बोलती है .पीछे पीछे चला साला दो कदम आगे निकल गया है . नीतिश के दबाये सुशील मोदी भी हमें दबाते दिख रहे हैं . पिछडे भी अब विकास और सुशासन के तरफ भाग रहे हैं. कई पत्रकार जो मेरे गाली खाने और झिड़क को आर्शीवाद समझा वो लोग आजकल मेरे लालटेन का शीशा तोड़ने पर लगे हैं.सो अब लालटेन फकफका रहा है .लग रहा है कि तेल समाप्ति पर है .फैलाये हवा भी अपने साथ नहीं .
धैर्य अब रहा नहीं . धर्म का साथ देते तो सांप्रदायिक कहलाते सो राज धर्म भी निभा नहीं पाया .मित्र तो नीतिश थे ,सुशील मोदी थे ,जो हमारी हर उटपटांग हरकत पर कभी मुस्कुराते कभी ठहाका लगाते रहे . जन समूह के साथ प्रेस समूह भी हमारे हर जुमले को काफी तरहिज देते रहे . पत्नी जिसे भूतपूर्व मुख्यमंत्री काखिताब जीवनपर्यंत के लिए वो भी अब मेरे साथ ही धैर्य को तिलांजलि दे दी . पहले बोल ही नहीं पाती थी .अब अटर-पटर बोलती है .पीछे पीछे चला साला दो कदम आगे निकल गया है . नीतिश के दबाये सुशील मोदी भी हमें दबाते दिख रहे हैं . पिछडे भी अब विकास और सुशासन के तरफ भाग रहे हैं. कई पत्रकार जो मेरे गाली खाने और झिड़क को आर्शीवाद समझा वो लोग आजकल मेरे लालटेन का शीशा तोड़ने पर लगे हैं.सो अब लालटेन फकफका रहा है .लग रहा है कि तेल समाप्ति पर है .फैलाये हवा भी अपने साथ नहीं .
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
गुरुवार, 22 जनवरी 2009
तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?
हमें जो कुछ कहना था आम जनता की तरफ़ से उसका एक पार्ट लिख दिया .बुरा लगा उनको जो सबकी बुराई करने की अच्छी-खासी दरमाहा [वेतन] लेते हैं. आप ग़लत हैं बन्धु ! मुझे टी.वी.की समझ नही है ये आपने लिख तो दिया .आपको आज़ादी का मतलब पता है ? समाचार का मतलब पता है ? अपने अधिकार और कर्तव्य का मतलब पता है ? नही पता है तो पांचवी का किताब पढ़े ,क्योंकि आप पांचवी पास से तेज नही है. पर घबराने की जरुरत नही है पदमश्री की उपाधि आप जैसे को मिल ही जाती है . आप हमारे राष्ट्राधिकारी तक को अंगुली दिखा सकते है लेकिन जिलाधिकारी की अंगुली पकड़कर चलने में परेशानी महसूस करते हैं . बताता हूँ जिलाधिकारी वह चीज है जिसके लिए आप स्नातक करते ही तीन बार पूरे जोर से तैयारी के उपरांत परीक्षा दिए और असफलता हाथ लिए पत्रकारिता में हाथ आजमाने लगे .सेंसरशिप का स्वरुप क्या था ? बैचैन कर देनेवाला था क्या ? मेरे ख़्याल से अभी विचार होना था . जिस प्रकार बच्चे छत से खेलते हुए निचे लुढ़क न जाए इसके लिए सुरक्षा घेरा दिया जाता है बस वही घेरा आपके इलाके में सेंसरशिप कहा जाता है .मेरे ख्याल से किसी की भी हद तो तय होनी ही चाहिए .आप खड़े कहाँ है इसकी समझ रहती तो बाउंड्री वाल की चर्चा ही न होती. आप अतिवादी से घिरे अपने आपको नही पाते ?नेताओं से पीटने ,गाली मिलने के अवसर का बार बार प्रसारण क्यों नही होता . जनता तो साथ होना चाहती है आपके साथ ऐसे मुद्दे पर .टी.वी जो है उसे समझने की समझ है हमें .आप जिनको आदर्श मानते है क्या कर पाये बोफोर्स का सोर्स लगाकर राज्य सभा पहुंचे तो गंभीरता की चादर ओढ़ बैठे .टी .वी. को क्या समझूं १०० चैनल में ५०% का आरक्षण आप न्यूज वालों ने ले लिया है .जिस पर न्यूज कम व्यूज ज्यादा होता है ,और अपने पास भी व्यूज खूब है . ५० के ५० पर कभी कसाब को कभी ओबामा को एक साथ देखते है .साक्षात्कार के लिए जिसे बुलाया जाता है उसे बोलने नही दिया जाता ,उसे तो माफ़ी मांगने के साथ समय का अभाव बताया जाता है फ़िर बार बार एक ही ख़बर दिखने दिखाने की क्या मजबूरी है .क्या कसाब , आरुशी ,प्रिंस ,ओबामा टाइप खबरे ही क्यों दिन रात चले . भारत विशाल देश है ,और क्या खबरों की अकाल नही किए हुए हैं आप लोग . आपकी चालाकी से आम जनता भी अब चालाक हो गई है . आपकी ख़बर पर एतवार कौन करता है ,आपका लाईव टेलेकास्ट पर से भी भरोसा उठ जाना साधारण बात तो है नही .इसलिए हे ख़बरदाता ख़बर की आंधी नही बयार चलाओ .पब्लिक रिमोट से ख़बर लेता रहेगा .आप खबरों को मल्टीप्लाई करते हो .हम पब्लिक तुंरत डिवाइड करने के बाद स्वीकारते हैं. आप जिसको डिवाइड करते हो हम मल्टीप्लाई करते है .अब बताइये आपने अपना विश्वास खोया है या पाया है ? आलोचना झेलिये ,झेलना होगा ! बिलबिलाइये नही .हम नेता नही है की आपसे सचेत रहे. जनता जो सोंचती है वो लिखा था ,लिखूंगा ."तुम नही होते तो हम मर जाते !" वाला गाना तो जनता कभी नही गाएगी. इसलिए हम केवल ये ही कहेंगे"तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?"
शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
मेरी मर्ज़ी !
आप भी दूध के धुले तो हो नही ! बड़ा चिल पों मचा रहे हैं आजकल आप लोग .थोड़ा सा प्रतिबन्ध क्या लगा ,लगे अपने आपको लोकतंत्र का सबसे सजग प्रहरी बताने . अरे आप सजग रहते तो सरकार सजग नही रहती क्या ? आपके प्रसारण पर रोक लगाने वाला सरकार कहाँ से हो गया .ये काम तो आपके चैनल के मालिक के जिम्मे था . अच्छा किया विरोध करके . भला एक आई एस अफसर को क्या समझ हो सकती है ख़बर के असर का .ख़बर का असर कैसे ,कहाँ ,और कब डालना है ,कोई आप मिडिया से सीखे .कड़ी मेहनत सच्चे लगन से अर्जित पत्रकारिता का डीग्री डिप्लोमा से भला ,झटके में पाई जिला समाहर्ता के पद से कैसी तुलना .दिखाइए न जो जो दिखाना है , जो हो रहा है उसी को तो दिखाते है आप . प्रिन्स को गढे में आपने नही डाला था . सैफ अली के हाथ पर करीना आपने नही लिखा था .अभिषेक की ऐश्वर्या से शादी आपने तो कराई नही .मुंबई हमले पर लगातार आपकी देशहित नजरें थी ही . पर कैमरा उधर मुंह घुमा ही लेता है जहाँ देश हित नजर आए .राजनीतिक विचार धारा में डुबकी लगाने वाले पंडूबी पक्षी आप भी है .तभी तो गुजरात और दिल्ली से जीतते हुए को हार के कगार पर खड़ा बताते रहे . हरवक्त केवल शिवराज पाटिल ही नही कोट बदलते थे ,आप भी चोला बदलते रहते हैं . लोकतंत्र के चारो प्रहरी में से कोई एक भी सजग नही है .एक सोया आदमी दुसरे सोये को कैसे जगा सकता है ? अपनी जोरदार खर्राटे से ? चौबीस मिनट के लायक जिसके पास समाग्री न हो वो चौबीस घंटे चैनल बजा रहा है . आप तो माध्यम हो सरकार बनाने गिराने का आप पर प्रतिबन्ध सर्वथा अनुचित है .एक दुसरे के लिए सिद्ध खतरे की घंटी को बजने देना चाहिए . देश हित में जरूरी है अधिकार अपनी मर्ज़ी का .कर्तव्य भी अपनी मर्ज़ी का . मैं चाहे ये करू मैं चाहे वो करूँ मेरी मर्ज़ी . है कि नही ?
Posted by Sanjay Sharma at 5:25 PM दालान पर .8 comments
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