सन् १९८४ मे मेरे मन की बात कागज़ पर उतर आई थी ।आज अचानक, न जाने क्यों ब्लॉग पर उतरने को बेताब दिखी । पर मैंने इसे ब्लॉग पर उतारा नही, चढाया है ।
कुछ तार मेरे मन के उलझे हुए है /
कुछ सार इस बात के सुलझे हुए हैं //
रोशनी मिली तो उठाई न नज़र /
अब तो सारे चिराग बुझे हुए हैं //
कुछ तार मेरे मन के ........
।दुखाया है बड़ी बेरहमी से तेरा दिल /
एहसास इस बात के अब मुझे हुए है //
कुछ तार मेरे मन के .........
किस कदर दूं उस जख्म पे मरहम /
जो जख्म मेरे घात के तुझे हुए है //
कुछ तार मेरे मन के .........