मंगलवार, 11 सितंबर 2012

चाचा-भतीजा

बच्चा पैदा ले बाप की ख़ुशी दबी दबी सी भले ही रहे ,चाचा की ख़ुशी उछलती कूदती नदी होती है .बाप की डांट की खाट खड़ी करता चाचा का प्यारा सा थाप बच्चे की मौज मस्ती का उतम इंतजाम करता रहा है .लिया -दिया के युग में बच्चे भी चाचा को प्रोमोट करते रहे हैं . बाप भी किसी का चाचा है वह भी उसी रवैया को अपनाता है , जो परंपरा चाचा और भतीजे के लिए तय है . कितना जानदार सम्बन्ध है , बेहद प्यारा ! ''क्यूँ भाई चाचा ..., हाँ भतीजा !'' से परिवार के सारे सदस्य मंद मुस्कान या ठहाकों के बीच सफ़र तय करते होते हैं .यह एक ऐसा रिश्ता है जिसका उपरी परत नाम के लिए आजन्म रिश्ता ही कहलाता है निभाता है पर अन्दर की परत का धीरे धीरे सड़ना कब शुरू होता है अहसास दोनों को नहीं होता .मतलब अन्दर की परत रिश्ता नहीं निभा पाता, पाक नहीं रहता . पाकिस्तान पैदा करता है जज की भूमिका के लिए अमेरिका पहले से मौजूद होता है .दोनों जज की न सुने ये जज भी चाहता है .धीरे धीरे बेटा ''अपना खून अपने को खिचता है '' के सिद्धांत को सही साबित करने की गरज से बाप के करीब आता जाता है . रिश्ता मिजाज से चलते है मसाज से नहीं ! सीमा तय है सबकी पर किसी रिश्ते की आकस्मिक मौत न हो , इसका प्रयास न हो . उपरी परत जितना मजबूत और चमकीला हो अन्दर वाली परत भी कम न हो .पर रहता कहाँ है ?

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