अँधेरे -उजाले ,सुख- दुःख,
अहसास जिसका हो सके
उन सब में आती जाती सी माँ !
मल-मूत्र, उलटी, थूक-खखार,
आँचल में सँवार लेती ,
प्रकृति की छाती सी माँ !
सर्वोतम पाठशाला में
सर्वोच्च शिक्षा का
क ख ग पढ़ाती सी माँ !
मनभावन खाना खिलाकर
सुनकर बच्चों की डकार
वासी रोटी खाती सी माँ !
अनवरत काम दर्द और थकान,
दिन भर के काँव काँव के बीच,
कोयल सी गाती माँ !
उभरता है अक्श उनके चेहरे पर
हमारे खरोच का भी
निज जख्म को छुपाती आत्मघाती सी माँ
अंतिम बूंद तक दे प्रकाश
स्नेह ख़त्म होने पर भी
जलना बंद नहीं करती
दीया की बाती सी माँ !
रोते बिलखते देखना नहीं पसंद
इसलिए आँख मूंद जाती है माँ !
बुला लेता भले हो निष्ठुर भगवन
रोके नहीं रूकती ममतामयी
सपनों में सौगात लाती सी माँ !
सोमवार, 28 फ़रवरी 2011
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