गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

"अपनी "खिचड़ी" को "खीर" कहना !

"बिहार चुनाव"
बदलाव की इच्छा जब जब बलवती हुई है, बिहार के चुनाव का आधार जातिगत नहीं रहा .
१९७७ और २००५ का चुनाव और इसके परिणाम इसका प्रमाण है. सभी धर्म, जाति के लोग

नीतिश जी को जिताया नहीं था ,बल्कि लालू जी को हराया था. बिहार करवट बदला, क्योंकि

बदलना चाहता था. इसके लिए जातिगत नीति [अनीति ] को ताक पर रखना जरूरी था .

बिहार विकास को हरी झंडी दिखाए वगैर ,नीतिश जी का एक साल भी टिकना मुश्किल था .
अर्थव्यवस्था जनमानस की सोंच को रिचार्ज करता है . बदहाली के राह में खुशहाली के मोड़

भी आते है उस मोड़ से चलकर चौड़ी सड़क पर आया जा सकता है .

विकास की इच्छा बिहार की थी . केवल नीतिश की इच्छा या प्रयास कहना , करोड़ों की भावना को
आहत करना होगा .क्योंकि उनके धुर विरोधी लालू जी पर भी विकास का भूत इस कदर सवार था
कि विकास को रेल की रफ़्तार देने में कोई कोताही नहीं बरती. आज पूरा बंगाल भले ममता अपने
कब्जे में कर लिया हो पर रेल बेकाबू है ." रेल विकास" से "बिहार विकास" का भरोसा जीतने
में लालू अब भी नाकाम हैं.
या यूँ कहें रेल विकास को चुनाव में भुना नहीं सके .सच ही कहा गया है ."सफलता के शिखर पर पहुंचना

आसान हैं, मुश्किल है वहां पर टिके रहना" . लालू की नौटंकी फिर से चालू हुआ 'पार्टी टिकट इच्छुक' के
साक्षात्कार से . इस साक्षात्कार में भरपूर मात्रा में डांट फटकार ,दुत्कार , दुराचार,अत्याचार
जो उनकी पार्टी का शिष्टाचार है}का नंगा प्रदर्शन था . अपमानित कार्यकर्ता लाइन में लग कर उनके
'लालटेन' में 'तेल' तो नहीं ही डाल पायेगा .
चुनावी वादा चाहे किसी भी दल का हो ,पूरा नहीं होता . जनता अब समझ रही है .
बिहार में ७७ और २००५ के बदलाव में चुनावी वादा आने से पहले लोगों ने मन बना लिया था पटकनी देने की .

जो "छूट" पिछले सरकार को मिलती आई है आवाम से वहीँ "छूट " नितीश जी भी चाह रहे हैं .
अब किसी भी सरकार को छूट देने की भूल जनता करती है तो बदलाव अपना अर्थ खो देगा .
एक दरोगा चाह लेता है तो अपने थाने को २४ घंटे के अन्दर टकुये की तरह सीधा कर देता है ,
वैसे ही जिलाधीश अपने जिले को . फिर एक राज्य का मुखिया राज्य को क्यों नहीं कर सकता ?
क्यों अगला पांच साल माँगा जा रहा है ? अपनी "खिचड़ी" को "खीर" कहना उचित है ?
आप अपराधी को माला पहनाकर ,जनता को ताली बजाने को नहीं कह रहे ?

" राजनीति में सब जायज है." इस कथन में राज्य का शोषण है , दोहन है .राष्ट्रद्रोह है .

बिहार में कांग्रेस पुनर्जन्म हेतु गर्भ में है .वैसे गर्भपात का दंश कई बार झेल चुकी है.शुभ शुभ रहा

तो नीतिश जी की "गोद " में खेलना पसंद करेगी . दिल्ली दरबार से नेता तय करने वाली पार्टी

बिहारी जनमानस को केंद्र सरकार द्वारा दिए गए मदद को समझाने, बुझाने या भुनाने में नाकाम साबित हुई.
मतलब राज्य और केंद्र का लेन-देन ठीक वैसे ही रहा जैसे बिगड़ैल बेटा बड़ा होकर बाप से बोल दे मेरे में
आपका खर्च ही क्या है ? राबड़ी जी भी बोली थी "हमें केंद्र ने कुछ नहीं दिया".
प्रो. रघुबंश ने बोलती बंद कर दिया था हिसाब देकर और उनका हिसाब लेकर .
कांग्रेस की चुनावी रणनीति बेहद फीकी है .

और राम विलास तो भोग विलास में लिप्त हैं नहीं तो मायावती अपने ५० सेंधमार भेज पाती .

नीतिश जी विकास की टोपी लगाये हुए भी परेशान है . छुपम -छुपाई खेलना पड़ रहा है .सांप-सीढ़ी भी .
जो इनका साथ दिया उसको तबाह और बर्बाद कर दिया इन्होने . भाजपा को अपना वाला "तीर"
मार कर" शर शैय्या" मुहैया करा दिया है .बोलने के लिए एक शब्द भी नहीं छोड़ा है जिसको मतदाता
के सामने भाजपा बोल सके .बिना शर्त समर्थन देने वाली भाजपा को सशर्त अपने साथ खड़ा होने की
इजाजत दिया है .मतलब "आना है आओ बुलाएँगे नही." उस मोदी से नहीं इस मोदी से काम चलाओ,
वरुण गाँधी से नहीं विकास की आंधी से काम चलाओ . जैसे इनका बाहुबली अबतक केवल जीवन बाटता रहा हो .

जैसा लालू जी ने आडवानी जी का रथ रोककर मुस्लिम समाज का पुरजोर विकास किया था ,ठीक वैसा ही विकास नितीश जी ने "गुजराती मोदी" ,और "वरुण" की "उड़ान" रद्द करवाकर किया है .पता नहीं नेता लोग ठगी को किसी भी रंग से पोत देते है .
भाजपा अकेले भी लड़ती तो ४०-५० सीट निकाल ले जाती अभी मुश्किल से २० निकाल पायेगी .क्योंकि कमज़ोर साथी की जरूरत है नितीश को . उनकी चुनावी रणनीति पिछले ४ साल से चल रही है . क्षेत्र परिसीमन चुपके से अपने फायेदे को सोंच कर किया है .भाजपा की उम्मीदवारी को प्रभावित किया है. केंद्र के पैसे को अपनी जेब का बताने में कामयाब रहा है . खाली पटना और नालंदा का मेकअप करके बिहार को सपना दिखाया है . पत्रकार पटाये गए है.
"दिल वाले बचाए दिल अपना, हम तीर चलाना क्यों छोड़े ! "अपने आदमी की तैनाती एक साल पहले . साईकिल से कन्या शिक्षा , और शिक्षण से पंचर शिक्षक को जोड़ा है .विद्यार्थी और शिक्षक के घर वाले तीर तो चलाएंगे ही . नितीश जी सधे हुए नेता भी हैं .शरद यादव ,जार्ज जैसे को चार्ज किया .बिहार को अपना समझकर ही न किसी को बिहार मसले में फटकने नहीं दिया .'एकोअहम द्वितीयोनास्ति'


कुछ भी हो अन्दर, 75 प्रतिशत लोग बाहर के लिपा पोती से प्रभावित है .एक मौका और नितीश जी को मिले शायद . चलिए दुआ करते है कि भाजपा को जिस मुकाम पर इन्होने पहुचाया है या इस चुनाव में जहाँ भेजने की तैयारी है .वो बिहारी मानस को नसीब न कराये. आदत में सुधार लाना जरुरी समझें. जो जन मानस १५ साल लालू के लालटेन की लाल रोशनी में गुजारा है ,उसे अगला पांच साल नीतिश की तीरंदाजी दिखने में हर्ज़ नहीं दिख रहा . जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझेगी जनता .

--संजय शर्मा---

1 टिप्पणी:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

आपके जीवन में बारबार खुशियों का भानु उदय हो ।
नववर्ष 2011 बन्धुवर, ऐसा मंगलमय हो ।
very very happy NEW YEAR 2011
आपको नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें |
satguru-satykikhoj.blogspot.com