गुरुवार, 14 जून 2007

"यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लान्लिर भवति भारतः....."

कला का सम्मान हम सभी उत्साहित होकर करते आये हैं.कला का व्यापक विस्तार हो इसके लिए प्रकृति ने पचुर maatraa मे जगह दी है,पर आज कल ये फ़ैलाने के बदले सिकुड़ता नज़र आ रह है.ये महसूसा ही नही, नंगी आंखों से देखा जा सकता है, कुठाराघात को
हम सब ने मिलकर सहा है, झेला है,और अब बदलते परिवेश को ही पावन पवित्र , मानने कि परिकल्पना हो रही है.मुल्याहीं को अमूल्य मन जा रह है,हम एक अस्थान पर ही कूद-कूद कर थक गए,जबकि एससी उर्जा मे मीलों का सफ़र तय किया जा सकता था.

सुना है कला के महाताव्पूर्ण उपासक स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्लाह खान फमौस सहनाई वादक अपने घर मे माँ सरस्वती का फोटो ना बल्कि सजावट के लिए रखा बल्कि रोज पूजा भी किया करते थे रियाज़ से पूर्व.जबकि मुस्लिम परिवार मे मूर्ति पूजा कि मनाही है.शहनाई का ये शहंशाह भी एक अव्वल दर्ज का कलाकार ही था.मगर एसके दिल मे सर्वास्ती का जो सम्मान था वो नग्न था. माँ सरस्वती नग्न नही थी .
ऐसे ही कई मुस्लिम कलाकार सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुचे सबों ने सरस्वती को
साड़ी मे ही सम्मान दिया,भरपूर सम्मान देने कि गरज से कभी माँ का साड़ी नही उत्तरा.बल्कि माँ के नंगे पाव को पूजा के बहाने फूलों से ढाका. मेरा मानना है पाव को धक् कर उनलोगों ने जिस शिखर पर पहुच कर तबला,सारंगी,बजाया उस शिखर कि कल्पना एस तुत्पुज्जिये कलाकार के बस कि नही.

ये ८०-९० का बुध मकबूल फ़िदा हुस्सिं.घोर बनाते-बनाते,माधुरी दिक्षित् पर फ़िदा हुआ समूचा कोउन्त्र्य हिहियता रह उसके घोर कि तरह,जबकि लगाम कि जरूरत ही.ताली से हिम्मत मे बढोतरी महंगाई कि तरह होती है सो हुई. माँ सरस्वती को अपनी सस्ती लोकप्रियता केलियेनंगा कर दिया,समर्थन मे हिंदु मुस्लिम सभी कलाकार,और नए मे आधुनिकता का दंभ भरने वाले सभी वर्ग के हिंदु से कला और स्वतंत्रता कि दुहाई देकर मकबूल के नाज नाच मे धर्म निरपेक्षता का मुसिक दिया.

अब भारतीय सहिसुनता को भाप कर,हिंदु कलाकार भारत माता कि साड़ी उत्तर कर अपनी लोकप्रियता का झंडा बाना लिया.पब्लिक विरोध किया,विरोध के विरोध मे कलाकार को भरपूर समर्थन मिल,ताजुब कि बात है उस हंगामे मे लडकी भी नग्न चित्रों के समर्थन मे खुद वेल्ल द्रेस्सेद थी. जबकि नग्नता का समर्थन नग्न होकर किया जता तो, असरकारक हो जता ,तार्किक होता, उचित होता.

तिरंगा झंडा का एक भी कलोर उल्टा- पलती हो जाये तो बबाल मच जता है,ओफ्फिसर सुस्पेंद हो जाते हैं,क्यों ? क्योंकि इससे हमने बड़मिजी से जोड़ कर देखना शुरू कर दिया है.देश कि भावना से पहले ही लिखित रूप मे जोड़ दिया है.अब कोई नही कह सकता कि मेरे अन्दर एक भावना आयी कि केशरिया को निचे या बीच के करके,हरा को उप्पेर या व्हिते को निचे करके अशोक चक्र को किसी कोने मे बैठा कर अपने कला कि भावना को सर्व विदित किया जाये.है किसी मे हिम्मत ? नही !हम मे से कोई नही कर सकता क्योंकि जहाँ पिटे जाने का खतरा हो हाथ नही डालना पसंद है.

भारत माँ भी कल्पना है,उनको भी फोटो मे साड़ी पहनाने वाला कलाकार ही था,उसके दिल मे भी सार्थक भावनाओ का समुद्र रह होगा.तुम होते कौन हो हमारी भावनाओ से टेस्ट मैच खेलने वाले ?

थूक है तुम्हारी विकृत मानसिकता पर,तुम्हारी कला भावना पर,तुम्हारी सस्ती लोकप्रियता पर,वे शर्मी कि हद हो गई.अपनी माँ का बलात्कार कराने चला है.

तुमरे विरोध मे धरना प्रदर्शन भी बेकार है.तुम जैसे मान मर्दन को आतुर कलाकार से तुम्हारी मानसिकता वाले २ मिनुतेस मे तुहे अपनी भावनाओं का बोध करा सकते है.तुम भारत माँ, सरस्वती माँ को पुरे हिंदु कि माँ मानते हो ना इसलिये तेरा ब्रुश एक आकार देता है.ऐसे मे तेरी माँ-बहन का सिर्फ चेहरा लिया जाये और तेरे ही बनाए पेंटिंग्स मे नग्न माँ के मुगलगार्डन से लगा दिया जाये तब भी तुम इससे कला कि भावनाओ का सम्मान ही कहोगे ? अगर हां तो तुम्हे “पदम श्री”मिलनी चाहिऐ.

भगवन ना करे वो दिन आये लेकिन तुम्हे भी सावधानी रखनी होगी अपनी भावनाओ
कि राजधानी मे.नग्नता अगर कला है तो कलाकार कौन नही हो सकता है ?.कला को अपने
हिसाब से परिभाषा मत दो.आवरण देना कला है आवरण उतारना कला नही हो सकता.
चीर हरण कराने वाले दुशाशन ! कृशन कभी भी पैदा हो जाएगा,एक नही हज़ारों अर्जुन के साथ ! वादा किया था
"यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लान्लिर भवति भारतः................"

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Hi Sanjay Jee,
Bahut hi badiya blog maintain kiya hai…read couple of them today…..:)
Thanks
Bhaskar Roy

बेनामी ने कहा…

Excellent!!!!!!!!

Vivek

बेनामी ने कहा…

किसी भी समाज की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना कलाकार जगत को शोभा नहीं देता ।
अपितु भारतीयों को अब सांकेतिकता से नाता तोड़कर कुछ सार्थक और प्रत्यक्ष कार्य करना शुरु करना होगा ।
राष्ट्रीय ध्वज का अपमान निंदनीय है, परंतु समूचे देश में हो रही किसानों की आत्महत्या उससे भी अधिक निंदनीय है । सरस्वती का अपमान निंदनीय है, परंतु देश भर में धड़ल्ले से चल रही बाल श्रम की कुप्रथा और भी निंदनीय है।
ज़रूरी है कि हम अपनी प्राथमिकताएँ निश्चित करें । केवल अपनी सभ्यता और संस्कृति का हवाला देकर "मेरा भारत महान" कहने से कुछ प्राप्त न होगा ।
इसीलिए अब भारतीयों को इन क्षुद्र विषयों में रुचि नहीं लेनी चाहिए । परंतु दुर्भाग्य से भारत के नेता इन्हीं विषयों के राजनीतिकरण में निपुण हैं ।

theawanish ने कहा…

aapke vichar wakayi hriday ko jhakajhor dene wale hai...
aapne hame aaj ki sachhayi aur hamari kamajoriyo se bhalibhati rubaru karaya hai...
thanx 4 motivation.............

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बेनामी ने कहा…

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