मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

आपत काल परखियहूँ चारी !

तुलसी दास जी की कविता की एक पंक्ति याद आ गई .धीरज धर्म मित्र अरु नारी / आपत काल परखियहूँ चारी !
धैर्य अब रहा नहीं . धर्म का साथ देते तो सांप्रदायिक कहलाते सो राज धर्म भी निभा नहीं पाया .मित्र तो नीतिश थे ,सुशील मोदी थे ,जो हमारी हर उटपटांग हरकत पर कभी मुस्कुराते कभी ठहाका लगाते रहे . जन समूह के साथ प्रेस समूह भी हमारे हर जुमले को काफी तरहिज देते रहे . पत्नी जिसे भूतपूर्व मुख्यमंत्री काखिताब जीवनपर्यंत के लिए वो भी अब मेरे साथ ही धैर्य को तिलांजलि दे दी . पहले बोल ही नहीं पाती थी .अब अटर-पटर बोलती है .पीछे पीछे चला साला दो कदम आगे निकल गया है . नीतिश के दबाये सुशील मोदी भी हमें दबाते दिख रहे हैं . पिछडे भी अब विकास और सुशासन के तरफ भाग रहे हैं. कई पत्रकार जो मेरे गाली खाने और झिड़क को आर्शीवाद समझा वो लोग आजकल मेरे लालटेन का शीशा तोड़ने पर लगे हैं.सो अब लालटेन फकफका रहा है .लग रहा है कि तेल समाप्ति पर है .फैलाये हवा भी अपने साथ नहीं .

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

परिभाषा !

"बोलने वाले को वरुण, करने वाले को कसाब कहते है."