बुधवार, 30 जनवरी 2008

पेट मे नौ टन पीठ पर दस टन !

मालूम नही मुझे ट्रक या टेंपो पर प्रसिद्ध सूक्ति या उक्ति उकेरे जाने के पीछे ट्रक मालिक का हाथ होता है , या ट्रक का ड्राईवर, क्लिनर का , या कि पेंटर अपनी मर्जी चला जाता है . ये जरूरी तो नही कि प्रत्येक ट्रक मालिक काफ़ी शिक्षित हो और ज्ञान प्रसार ,प्रचार का ठेका लिया हो .नेशनल परमिट [अगर है तो ] और , ट्रक नंबर के अलावा वह कुछ और न लिखने लिखवाने के लिए स्वतंत्र है . पर पता नही क्यों सड़क सुरक्षा से जुड़े निर्देश के साथ महत्वपूर्ण [दस टन का ] सामाजिक संदेश, राष्ट्रीय संदेश दिए फिरता है .नौ टन का वजन लिये ये माल वाहन के साथ संदेश वाहन का भी पुनीत कर्तव्य निभाता है .
परिचयात्मक उक्ति :-[१] " ये उस देश की गाड़ी है जिस देश मे गंगा बहती है " [२ ] रोड किंग [३] बादशाह

सकारात्मक उक्ति :- [१]"कर्म ही पूजा है ."[ २] अनुशासन ही देश को महान बनाता है [३]" काम अधिक बातें कम "[४] इमानदारी एक अच्छी नीति है .[५] दुल्हन ही दहेज़ ."

दंडनात्मक उक्ति :- "बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला " कुछ संदेश ,निर्देश कोमल उदंडता का परिचय देता हैं जैसे " बजा हौरन , निकल फौरन " जगह मिलने पर ही पास दिया जाएगा " मैं तो यूं ही चलूँगा "
कुछ वजनात्मक लेकिन फूहड़ता लिए " चाचा नौ टन चाची टनाटन "
चालक की खिड़की पर "पायलट" के अलावा दर्द भरे शेर भी लिखा होता है जो मजबूरी मे घर परिवार से दूरी को दर्शाता है पहली पंक्ति याद नही रहा दूसरी पंक्ति ऐसे है " किस्मत ही ऐसी पाई है कि हर वक्त सफर मे रहते हैं ".

इन सब के आलावा और कई संदेश होते है जो कुछ तो मालिक के निर्देश से उकेरे जाते होंगे और कुछ चालक, खलासी, और पेंटर के योगदान से सम्भव हो पाता होगा .ऐसा संदेश की रुपरेखा और प्रकृति को देखकर महज अंदाजा है मेरा . चालक ,खलासी या पेंटर साधारणतः कम शिक्षित होते है ,और अधिकांशतः मालिक भी उच्च शिक्षा धारक नही होते .फ़िर भी कबीर की तरह वो सब कुछ दिए जा रहा है जो हर वक्त हमारे जेहन मे घुसने -घुसाने की तड़प लिए होता है .
क्या इसका असर कहीं दिखता है ? कोई पढ़ता भी है ? या पढ़कर सब ऐसे ही बकवास है कह जाता है ? नही भाई
ये पढ़ा जाता है ,मनन किया जाता है ओर मिट या अमिट असर भी कर जाता है . मैंने तब जाना जब कहीं किसी
दहेजलोभी से बहसबाजी के क्रम मे अपने सुपुत्र की शादी मे दहेज़ न लेने की घोषणा कर दी . सुपुत्र मानेगा तब न ? तपाक से उत्तर पाकर अपने तेरह वर्षीय पुत्र के मन को टटोलना जरूरी समझा क्योंकि इस विषय पर पिता-पुत्र
संवाद कभी न हुआ था .मैंने कहा बेटा मैं तुम्हारी शादी मे अपार दहेज़ लूंगा ,खूब मौज करूगा ,आह ! बड़ी गाड़ी ,कैश, बड़ा घर पूरी जिंदगी बदल के रख दूंगा देखना ! उसकी पहली असहमति मेरी जीत पक्की कर गई .उसने सवाल किया " पापा आपने पढ़ा नही किसी ट्रक पर लिखा कि दुल्हन ही दहेज़ है " अब संदेश वाहन की जीत भी पक्की न हो गई क्या ? दोहरी जीत आंखों को शुष्क बनाए रखने की ताकत कहाँ रखती है !