आसमान छूती उमीदें , भागती हुई ज़िन्दगी मे हमे गुड नही , बेटर भी नही सीधे बेस्ट चाहिऐ इसलिये हमे उन तमाम इंतजाम करने को विवश किया जिससे बेस्ट पाया जाये ।
'स्कोर -मोर ' के जमाने मे हम अपने बच्चों को अपनी सामर्थ्य से ज्यादा बड़ा स्कूल मे दाखिला दिला कर एक बड़ी राशि जेब से निकाल सिर्फ दोस्तो मे रौब जमाते फिरते है " हमारा पुत्र शहर के बडे स्कुल मे पढता है ।
स्कूल का बड़ा होना , रोज आर्ट ऎंड क्राफ्ट के नाम
पर लूटते रहना ,फैशन शो , अनुअल दे अलग अलग डोनेशन , विकास शुल्क , देते रहना
हमे भाता है । कमाल की बात है हम बदले मे सिर्फ अपने बच्चों से ही चाहते है स्कूल से नही , हमारी मोटी रकम स्कूल को मोटा बना जाता है । devlopment चर्जेज हम पे करते है अपने ward के देवेलोप्मेंत के लिए नही ,स्कुल के विकास के लिए स्कुल कि ऊच्ची और चमचमाती बिल्डिंग मंहगे प्लान्त्तेसन हमारी आंखों को सकूं दे जाता है ।
रिपोर्ट कार्ड दर्शाता है , हमारे बच्चों का देवेलोप्मेंत .अब अपनी परेशानी का दौर शुरू हो जाता है
माउथ स्पीक के लायक नही रह जाता। सो स्कुल को न सुना कर बुरे मार्क्स के लिए बुरे रिमार्क्स अपने बच्चों पर ही पास करके हम प्राइवेट तियुशन वाले विकल्प की तलाश शुरू कर देते हैं । मतलब भगवान् पर सर्वस्व न्योछावर कर के दक्षिना के लिए पंडित कि तलाश मे लग जाते हैं ।
कभी -कभी मिश्रित भाव मेरे दिलो-दिमाग को ऐसा झकझोर जाता है कि अकेले मे अपने आप को मानसिक रोगी घोषित कर देना पसंद आता है । रोष, दुःख के तालमेल से बनी नदी मे
सावन -भादो की तरह सवालों की बाढ़ आ जाती है । ये सवाल भी अजीब होते है ।
क्या 'पुअर मार्क्स ' के लिए अपना बच्चा ही दोषी है ,स्कुल नही ?
क्या हम स्कूल से एक्स्प्लानेसन नही माँग सकते ?
कम अंक आने पर बुरा भला हम अपने बच्चों के बदले स्कूल को क्यों नही कहते ?
फीस मे delay होने पर fine भरने वाले हम 'गुड' मार्क्स मे देर होने पर क्यों नही मुँह खोलते
?
कहीँ हम स्कूल को बड़ा शेर तो नही समझते ?
हम सब ये करते हैं जी , मुँह खोलते हैं , बुरा -भला भी सुनाया जाता हैं ,मौखिक एक्स्प्लानेसन माँग कर सफाई मे कुछ भी नही सुनते हैं । मतलब चुप ! चुप !! चुप !!!
कहकर बोलती भी बंद कर देते हैं । बच्चे को अन्यत्र स्थानान्तरण कर देते हैं । निजी स्कूल
की कमी कि भरपाई के लिए जो प्राइवेट प्रशिक्षक् रखा जाता है उसे ही सुनाया जाता है । स्कूल को थोड़े न सुनाया जाता है । वेचारा कम पैसे मे पुरी कीमत वसूलने वाला यन्त्र
होता है । सो असफलता की मजबूत कड़ी मान कर सस्ते मे निपट लिया जाता है ।
हमे हिचक नही होती ये सब सुनाने मे " चले आते हैं ग्रामीण इलाक़े से मूंह लेकर ,कादों कमे
अंक से इंजीनियर बनते -बनते रह गए थे । न गणित आता है ना विज्ञान । अरे पुरे ५०० रुपया देता हूँ हर महिने फिर भी तरीके से नही पढा पाया । पैसे मुफ़्त मे आते हैं क्या ?
इस prashixak ने स्कूल मे जमा किये गए ३५०० रूपये मासिक किस्त पर पानी फेर गया । अरमानों का गला रेता है तुने । तुम टीचर नही फटीचर हो । "
उपर्युक्त नौटंकी हमारी भडास जरुर निकलती है पर समस्या का समाधान नही दिखता । हम इसका टोपी उसके सर करते रहते हैं । बीमार बड़ा भाई होता है ओर टेबलेट छोटे भाई को दिया जाता है । हम सरकार को कर के रूप मे एक छोटा सा रकम देते हैं ओर सुविधा मन मुताविक ना मिलने पर धरना प्रदर्शन , भूख हड़ताल , तोड़ -फोड़ , तख्ता पलट तक कर देते प्राइवेट जेबकतरों को भरपूर सम्मान देते हैं । खुली छूट देते हैं क्यों ? मालूम नही ।
अल्बता हम प्राइवेट अस्पताल का गिरेवान हाथ मे रखते हैं । जबकि इनर पार्ट्स ऑफ़ मानवीय शरीर का पता नही होता हमे , लाइफ पर भरोसा किसी को नही होता फिर भी अगर
ईलाज मे थोडा भी इधर -उधर हुआ एवं रिजल्ट बुरा हुआ तो आसमान सर पर टिका लिया जाता है। डाक्टर बाबू पर कानून का हाथ एवं अस्पताल पर पब्लिक कि अंगुली खडी होने मे देर कहॉ करती है।
हम कहते हैं कि कबतक हम अपने भरे गए फी का हिसाब स्कूल से नही माँगेंगे ? कुछ भी दिक्कत हो तो उपभोक्ता फोरम पहुचने वाले जागरूक नागरिक कब स्कूल को स्कूल का दोष बताने का प्रोग्राम है ? कबतक इस उमकते घोड़े को लगाम से वंचित रखा जाएगा ? इसके देख -रेख मे अपना बच्चा ८ घंटा व्यतीत करता है । तो पालिस कौन करेगा । रूप का सृजन कौन करेगा ? स्कूल टीचर या प्राइवेट टीचर जो अपने बच्चे को मात्र एक ही घंटा पढा जाता है । हमे जो सवाल ८ घंटे वाले से पूछना चाहिऐ वो एक घंटे वाले से क्यों पूछने का मन करता रहता है । कब तक हम सिरफिरे की तरह टोपी ट्रांसफर करते रहेंगे ? अब वक्त आ गया है प्राइवेट टीचर की टोपी स्कूल को पहनाने का ।
अपने बच्चों कि बैटरी चार्ज तो किया ही जाना चाहिऐ । लेकिन स्कूल कि बैटरी भी मंथली बेस पर चार्ज करते रहना परम आवश्यक है एवं पुनीत कर्तव्य है अभिभावक का । मतलब
अपने बच्चों को स्कूल के क्लास मे जाने दे एवं आप अपने क्लास मे स्कूल को शामिल रखें । स्कोर मोर स्वतः हो जाएगा ।
शुक्रवार, 15 जून 2007
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1 टिप्पणी:
excellent!!!
I liked color combination too.
Vivek
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