तुलसी दास जी की कविता की एक पंक्ति याद आ गई .धीरज धर्म मित्र अरु नारी / आपत काल परखियहूँ चारी !
धैर्य अब रहा नहीं . धर्म का साथ देते तो सांप्रदायिक कहलाते सो राज धर्म भी निभा नहीं पाया .मित्र तो नीतिश थे ,सुशील मोदी थे ,जो हमारी हर उटपटांग हरकत पर कभी मुस्कुराते कभी ठहाका लगाते रहे . जन समूह के साथ प्रेस समूह भी हमारे हर जुमले को काफी तरहिज देते रहे . पत्नी जिसे भूतपूर्व मुख्यमंत्री काखिताब जीवनपर्यंत के लिए वो भी अब मेरे साथ ही धैर्य को तिलांजलि दे दी . पहले बोल ही नहीं पाती थी .अब अटर-पटर बोलती है .पीछे पीछे चला साला दो कदम आगे निकल गया है . नीतिश के दबाये सुशील मोदी भी हमें दबाते दिख रहे हैं . पिछडे भी अब विकास और सुशासन के तरफ भाग रहे हैं. कई पत्रकार जो मेरे गाली खाने और झिड़क को आर्शीवाद समझा वो लोग आजकल मेरे लालटेन का शीशा तोड़ने पर लगे हैं.सो अब लालटेन फकफका रहा है .लग रहा है कि तेल समाप्ति पर है .फैलाये हवा भी अपने साथ नहीं .
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
देखिये भैसियाँ किस करवट बैठती है ये १६ तारीख के बाद ही पता चलेगा.
पुराने दोस्त गए तो क्या नए दोस्त तो बन गए.
क्या दिव्य ज्ञान प्राप्ति हेतु ,दिव्य दृष्टि भी लेते गए ?
ये दियद्रिस्ती तो संजय से भी तेज़ है
एक टिप्पणी भेजें