tag:blogger.com,1999:blog-45742525899892014722024-03-05T00:11:42.528-08:00"दिव्य दृष्टि ""माय दिव्य दृष्टि"संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-62510750255805697192012-09-11T23:54:00.002-07:002012-09-11T23:54:33.712-07:00राष्ट्रनिर्माता को वेतन !मनोहरपोथी, स्लेट,कच्ची पेंसिल से लैश बस्ता उठाये सखिचन पासवान स्कूल के 'बालवर्ग' का छात्र, मात्र १५ दिनों के लिए था .१० रुपये की छात्रवृति उसे छात्र बनाये हुए था क्लास में आसन ज़माने के लिए एक खाली बोरी अपने अपने घर से रोज बस्ता की तरह लाना ले जाना होता था नहीं लाये तो फर्श पर बैठिये .चौथी और पांचवी क्लास में डेस्क बेंच उपलब्ध था.सब मास्टर साहेब का हाथ छड़ी से सुशोभित रहता /.पेन और पतली कानूनी डायरी जेब में ! बिल कब गया , वेतन कब मिलेगा की चर्चा में छड़ी भूल आये मास्टर साहेब को छड़ी उपलब्ध कराना मोनिटर का कर्त्तव्य था . दस बजिया स्कूल का मोनिटर आम तौर पर कक्षा में प्रथम आने वाला छात्र ही होता था .मास्टर साहेब को शोर गुल से बहुत परहेज होता था . और बच्चे को अनुशासन से / कुछ मास्टर साहेब शिकायत की सुनवाई दोनों पक्ष को पहले बराबर -बराबर छड़ी बजार के, फिर से दोषी को ऐसे पिटते थे कि बिना ट्रेनिंग के कत्थक और भरतनाट्यम कर लेता था . पिटाई की क्रिया में छड़ी का टूटना नित्य क्रिया में शामिल था .नई छड़ी की व्यवस्था मोनिटर...के जिम्मे , और पीटने की प्रबल संभावनाओ से लैश बच्चे, इशारे में कमजोर छड़ी के इंतजाम की पैरवी कर लेता था .
हिंदी , उत्कृष्ट कब की हो गयी होती अगर बोलने दी जाती . आज अंग्रेजी बोलने को उकसाया जाता है . तब खडी हिंदी पर पाबन्दी थी . मार खाने में माहिर राम प्रवेश दुसरे साथी के लिए भी अवसर उपलब्ध करवाने में हिचकता नहीं था . धीरे से एक लप्पड़ जड़ दिया सखिचन के पीठ पर . सखिचन १०-१५ दिनों से लगातार मास्टर साहेब की हिंदी पचा रहा था . लेकिन आज उसने शिकायत में उलटी कर दी .संवाद -" मास्टर साहेब मारती है ! " कौन मारती है ? "ईस मारती है !" तू भी कम खच्चर नहीं है के मंत्रोचारण के बाद एक छड़ी स्वाहा हो गया . वो दिन सखीचन का आखिरी स्कूली दिन था . बाद में पता चला मास्टर साहेब वेतन के लिए प्रतीक्षारत थे / और वेतन अगले माह आने की खबर से विचलित भी थे ./
राष्ट्रनिर्माता को वेतन भी पुरस्कार की तरह दिया जाता था .कब पुरस्कृत होंगे पता नहीं ! आज कोचिंग टिउशन चालू है छठे वेतन लागू है ,!
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संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-47789013246455051482012-09-11T23:47:00.001-07:002012-09-11T23:47:10.807-07:00भविष्य पर भरोसा !महाभारत अपने घर में रखने और रोज पढ़ने वाले पं.शिव मिश्र तीस साल पहले अपने प्रथम पुत्र की शादी तय कर रहे थे /जन्मपत्री और फोटो के सहारे बातें बनती दिख रही थी / अब मध्यस्थ अपने प्रमुख भूमिका में आने को आतुर था 'लेना एक न देना दो' को झुठलाने के लिए'लेन -देन ' का चर्चा धीरे धीरे गरम हो रहा था / कन्या के मैट्रिक होने से, कन्या पिता की आवाज में 'टनक' बरकार था और उधर महाभारत और तमाम साहित्य से बीर ...रस 'चुआ' कर पिए हुए वर -पिता का स्वर कमजोर बैटरी के रेडियो जैसा कभी अप -डाउन जा रहा था /.''ये आप करेंगे ,ये भी आपके ही तरफ से होगा और हाँ ये भी और ....'' ये भी, वो भी'' सुन - सुन के कन्या पिता में वीर रस ट्रान्सफर हो गया / बोल फुट पड़े '' आप क्या समझते है मेरी लड़की मैट्रिकुलेट है !'' ''तो मेरा बेटा बी.ए. बुलेट है '' का जबाब तपाक से पा सहम गए / अंग्रेजी साहित्य से स्नातक पुत्र , गाँव के ड्रामा में कभी चंद्रशेखर आजाद , कभी अभिमन्यु बन जाता था . बाकी नियमतः दोपहर से सूर्यास्त तक का समय ताश के पते के सहारे काट लेता था /.हलाकि बाद के वर्षों में ... चीनी मिल में किरानी होने से किसान का पैसा मारने की आदत के कारण पहले पैसा और बाद में इसका सह उत्पाद 'इज्जत ' कमाया बेइज्जत हो हो के /
भविष्य पर जितना 'भरोसा' 'कन्या पिता' को होता है उतना 'वर- पिता' को शायद ही होता है / बिना 'विनिमय' के 'बाजा' नहीं बजता .' मैट्रिकुलेट , बी.ए. बुलेट के साथ बाँध दी जाती है, समुचित सम्भावना के साथ /
संभावना के दायरे का गठन धुक धुकी से ही शुरू होता है .वैसे सम्भावना तरल होती है ठोस मान लिया जाता है / सम्भावना सत्य भी हो जाता है जो सत्य न हो पाता है वो एक सीमा तक छटपटा कर संतोष को जन्म देता है / पर ये संतोष 'संतोषम परम सुखम! ' को सत्यापित नहीं कर पाता / **************************
बिहार से चला, परम ज्ञानी ननग्रेजुएट दिल्ली आता है ,बिना 'लभे' लाभ कमाया जाय का लक्ष्य लेकर / कम्प्यूटर के शिक्षण प्रशिक्षण पाकर , अपना प्रशिक्षण केंद्र तक का सफ़र पहले मुश्किल अब आराम से तय कर रहा है . ८ लाख का दहेज़ उसे सहेजने में कोई कसर नहीं छोड़ा है. सफलता का असर 'दिल' से लेकर दिमाग तक सफ़र तय किया लगता है . धरमपत्नी सुन्दर , सुशिक्षित , होने के बावजूद परित्यक्ता की जिंदगी जी रही है माँ बाप ने ८ लाख का विनिमय- वितरण को दोनों पक्षों ने सार्वजनिक किया था / अब सुन रहा हूँ एक कार की मांग का समारोह है जिसमे वो लड़का 'सपरिवार सादर आमंत्रित है '.सुयोग्य कन्या को बेकार साबित करने वाले यज्ञ में वो मध्यस्थ भी शामिल है / कार मिलते ही उस लड़की को सरकार समझने को समझाया जा रहा है कन्या पक्ष को /
उम्मीद से नींद गायब है लड़की का / लेकिन कन्या पक्ष 'चायनीज सामान' की गारंटी चाहता है / ८ लाख का रकम ,सोना देकर जब रोना हाथ लगे फिर ३ लाख का कार कैसे दमदार साबित हो / देना तो पड़ेगा जब सामने वाले को बड़ा माना है तो / माँगना है तो माँ बाप से मांग न ! नहीं तो "रूपं देहि , जयं देहि, यशो देहि द्विषो जहि" गा ले !
मर्यादा समुद्र से बड़ा होता है . हनुमान भी नहीं लांघ पाते / क्या होगा ? माँ जाने !
संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-63291798837144913942012-09-11T23:38:00.000-07:002012-09-11T23:38:48.176-07:00चाचा-भतीजाबच्चा पैदा ले बाप की ख़ुशी दबी दबी सी भले ही रहे ,चाचा की ख़ुशी उछलती कूदती नदी होती है .बाप की डांट की खाट खड़ी करता चाचा का प्यारा सा थाप बच्चे की मौज मस्ती का उतम इंतजाम करता रहा है .लिया -दिया के युग में बच्चे भी चाचा को प्रोमोट करते रहे हैं . बाप भी किसी का चाचा है वह भी उसी रवैया को अपनाता है , जो परंपरा चाचा और भतीजे के लिए तय है . कितना जानदार सम्बन्ध है , बेहद प्यारा !
''क्यूँ भाई चाचा ..., हाँ भतीजा !'' से परिवार के सारे सदस्य मंद मुस्कान या ठहाकों के बीच सफ़र तय करते होते हैं .यह एक ऐसा रिश्ता है जिसका उपरी परत नाम के लिए आजन्म रिश्ता ही कहलाता है निभाता है पर अन्दर की परत का धीरे धीरे सड़ना कब शुरू होता है अहसास दोनों को नहीं होता .मतलब अन्दर की परत रिश्ता नहीं निभा पाता, पाक नहीं रहता . पाकिस्तान पैदा करता है जज की भूमिका के लिए अमेरिका पहले से मौजूद होता है .दोनों जज की न सुने ये जज भी चाहता है .धीरे धीरे बेटा ''अपना खून अपने को खिचता है '' के सिद्धांत को सही साबित करने की गरज से बाप के करीब आता जाता है . रिश्ता मिजाज से चलते है मसाज से नहीं ! सीमा तय है सबकी पर किसी रिश्ते की आकस्मिक मौत न हो , इसका प्रयास न हो . उपरी परत जितना मजबूत और चमकीला हो अन्दर वाली परत भी कम न हो .पर रहता कहाँ है ?
संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-36834316088279571142012-05-31T04:17:00.001-07:002012-05-31T04:17:50.867-07:00आमिर आजिज हैं हम !आमिर, जारी रहे ! यहाँ कोई भी कुलपति के चरित्र में झांक के विश्वविधालय में नामांकन नहीं कराता. प्राचार्य की जन्म कुंडली देखे बैगैर विद्यालय जाता है .शिक्षक संविधान के किस अनुछेद में छेद किया है बिना पता किये हुए चुपचाप शिक्षा ग्रहण किये हुए लोग है ये .बड़े दलाल , लुटेरे के संस्थान से बिना उसकी कुंडली मिलान किये विद्योपार्जन , धनोपार्जन करे तो वाह वाह ! हम कभी भी डाक्टर के चरित्र का पता नहीं करते ,बस इलाज अच्छा हो . फोर्टिस, अपोलो, मैक्स के मालिको चरित्र दर्पण अपने पास नहीं होता .वैसे भी पब्लिक के लिए पब्लिक की बात ,पब्लिक का सर्वे , पब्लिक का दर्द पब्लिक के मरहम के लिए ,पब्लिक को पब्लिकली दिया !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
</div>संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-67732053862233502092012-05-31T04:15:00.003-07:002012-05-31T04:15:42.548-07:00कार्टूनी आरक्षण !उस रोज कपिल जी को देख के हैरानी हुई ! लड़की के पिता की तरह सब कुछ दे के, बिना किसी गलती के लड़के वाले से माफ़ी माँगने जैसा ! शिक्षा में ,नौकरी में चलित आरक्षण क्या कम है ? .'समझदारी' में भी आरक्षण देना आग से खेलने जैसा है ,कपिलमुनि ! जिस वोट के लिए घुटने टेक रहे है वो पिछले १५ -२० साल से सरकार का पैर तोड़ के बैसाखी थमाए हुए है .कार्टून को समझाने की जरूरत थी न कि समझदारी में आरक्षण की !संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-18463199688751766772012-05-31T04:08:00.004-07:002012-05-31T04:10:34.776-07:00कामना है तेरी जय की. विजय की !परिणाम का मौसम है ,जिन बच्चों को परीक्षा का फल नहीं मिला होगा वो गहन निराशा में होंगे .मिल रही सांत्वना
कम पड़ रही होगी जबतक माँ-पिताजी से सांत्वना जबतक मिले नहीं तबतक छटपटाहट कायम रहेगी .आंधी तूफ़ान
की तरह असफलता दिल से दिमाग तक को झकझोर रही होगी.आंधी में बिजली काट दी जाती है.पर बहुत से अभिभावक सफल बच्चे का फोटो ,उसका रैंक ,उसकी लचर आर्थिक स्थिति की बखान करते नहीं थकते .चर्चा में तुलना होता है .जो आंधी में बिजली सप्लाई जैसा ही है .तार टूटेगा ,गिरेगा ,किसी की जान ले लेगा ! उसकी आंधी थमने दीजिये तब चिराग जलाइए .एक रास्ता बंद हो जाने भर से यात्रा बंद नहीं हो जाती . रास्ते कई हैं जो मंजिल तक पहुचाती है . नए नए कई रास्ते बने है पर 'राही' नहीं रहेगा तो रास्ते किसलिए ? मनोबल तोडिये नहीं बढाइये . चुके हुए ! आगे तेरे से कोई चुक न हो , कामना है तेरी जय की. विजय की !संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-37133833549805994332012-03-22T04:09:00.004-07:002012-03-22T04:59:18.855-07:00'मौजे के मौज' !आज अपने राज्य का जन्म दिन है .सौ साल के हो गए बाबा बिहार .हर साल को नया करता गया .जनता से ही सरकार में आते हैं लोग .जिन्हें प्रदेश से देश से लगाव रहा,वो इसके रख रखाव में कोई कसर नहीं छोड़े . देश गुलामी की मार से पस्त था तब हमारा सहयोग जबरदस्त था .त्याग में, पांडित्य में, आतिथ्य में, सेवा में, संघर्ष में आगे ही रहे .जो गलत राजनीति की उपज थे ,वे अपच ही रहे .हवा की दिशा होती है आंधी की नहीं कुछ लोग जो परिवर्तन की आंधी में उड़कर आये उन्होंने गन्दा किया लोगों ने सफाई की ,डंडा किया उन्हें ! जनमानस बहकावे में आराम तो कर लेता है पर भूखे नहीं रह पाता .अपने हिस्से की आखिरी रोटी भी कोई क्यों दे?बगल में मलाई कोप्ता, मलाई पान चले और इधर दिमाग भी न चले .शैतानी दिमाग थाली छिनने की नीति पर राजनीति की ,मानवी दिमाग अपनी थाली सजाने का'राज'जाना !'नीति'बनाई ! तो प्रीत की रीति चल निकली . <br />गाँव में मौजे सहनी का बेटा ,हजारी लाल अपने चाचा के सहयोग से पांचवी तक पढ़ने के कारण जातिगत पेशा ,मछली पकड़ने से मुक्त रहा पर बाप द्वारा पकडे गए मछली की बिक्री पर बड़े परिवार का गुजारा संभव नहीं था . मौज करने का उपाय सोचता गया मौजे का बेटा ! कुछ पैसे का जुगाड़ किया पान की दूकान खोल ली ,हँसते हुए उधार में ग्राहक के मुंह के साथ दिल रंगता रहा . पान ने चाय की दुकान और फिर नास्ते की दूकान खोलवा दी आज मौजे ३० साल से अपने तीनो बेटे के साथ खुद भी काफी व्यस्त है ,दुकान ही नहीं पैसा भी संभाल रहा है . <br />तरक्की के बीज तब डाले गए जब लालू बिहार का खेत नहीं फसल जोत रहे थे . मौजे की थाली में मोटा मलाई होता था १९९०-९२ में .उसकी थाली में 'छाली' किसी राजनेता या पार्टी की नीति ने नहीं डाला .तो किसी राजनितिक फैसले या नीतिगत फैसले से वो इस सुविधा से वंचित भी नहीं रहा होगा .1996 से गाँव की हर बेचीं जाने वाली जमीन का सशक्त ग्राहक भी बन गया है .व्यक्ति प्रगति करेगा , समाज प्रगति करेगा . सरकारी नीति चाहे जो भी हो व्यक्ति को साफ़ नियत से बनाई अपनी नीति पर चलनी चाहिए . साफ़ सड़क पर चलिए . पर ये न कहिये कि ये नितीश जी की है ,क्योंकि वो भी नहीं कह रहे कि ये केंद्र की है .झूठे से भी सत्य बोलिए ! मैंने आपके दिए अनुभव के आधार पर फेस बुक पर लिखा था -<br />अपनी सोच की दिशा ही दशा बदलती है सरकार अपनी रोटी सेकती है ! पर ३० साल पहले की मौजे की थाली निकला . सुखी रोटी , चार फांक आलू , पकाया लाल मिर्च .पर सबकी 'थाली में छाली' की मंगलकामना के साथ ! बिहार पर असीम गर्व है ! 'मौजे के मौज' पर भी !संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-14232494786719158422011-08-29T01:13:00.000-07:002011-08-29T01:17:15.683-07:00माँ अब फोटो में है !कब जननी का जन्म हुआ मालूम नहीं. जन्म दिन शुरू से प्रचलन में रहा नहीं .पर पुण्यतिथि की परम्परा संस्कृति में रची बसी है . कल्ह माँ की पुण्यतिथि थी .कल्ह के दिन ही माँ अपना आँचल मेरे सर से समेट ली थी .हमउम्र की माँ क्या दादी अभी मौजूद है, ये उनका सौभाग्य ! मैं अक्सर उनमे माँ तलाशता रहता हूँ झलक मिलती है कभी कभी . दर्द ,मुस्कान तैरता है, उतराता है फिर डूब जाता है . काश ! इश्वरिये संविधान में माँ के जाने पर प्रतिबन्ध होता . माँ को 'माय' कब और कैसे कहा अभी समझ में आ ही रहा था कि....
<br />माय को 'आप' कहते कहते 'तुम' कहना कब और कैसे शुरू किया याद नहीं. रिसर्च का वक्त था ,पिताजी क्यों शुरू से अंत तक ''आप " रहते हैं ,माँ क्यों 'तुम' का सफ़र सुहाना समझती है .फिर से आप कहने का मन था ."आप -तुम -आप" की धुन पर लय देने की चाह , डाह दी गई . 'आप' से 'तुम' तक स्वर साथ दिया 'आप' तक आते आते टूट गया ,बिखर गया स्वर के साथ सब कुछ .क्योंकि माँ धुरी थी .
<br />माँ तुम माँ हो ! केवल माँ हो !! क्यों मैं बहुत बार कहता था . माँ परेशां हो जाती थी सुनकर .
<br />
<br />जो है हमारे पास वो दीर्घकाल तक रहेंगे ,ठोस हैं , अविनाशी हैं का भ्रम , हमें हर पल को संजीदगी से जीने नहीं देता,उपयोग ,उपभोग नहीं करने देता .
<br />"न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो ,हर एक पल की ख़ुशी को गले लगा के जियो ! " योजना को तत्काल आकार दिया जाना चाहिए .
<br />फोटो में है माँ अब , दोनों फोटो में माला पहनी हुई है . एक में मुस्कुराती "माय" है , दुसरे में उदास "माय "!
<br />दोनों फोटो कुछ-कुछ बताने समझाने में व्यस्त रहती है . संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-17323732337158968352011-06-02T02:48:00.000-07:002011-06-02T02:55:14.219-07:00प्रसाद वितरण !राजपथ पर दरवार सजा .समारोह था. जो अपने बदौलत लालटेन की रोशनी में प्रथम स्थान मैट्रिक में पाए वो सम्मानित किये गए. जो राज्य में प्रथम, जिला में प्रथम आए या फिर अपने स्कूल में अब्बल रहे हो उनके हौसले और बुलंद किये जाए. समाज भी सम्मान करता है, राजा ने भी किया .अगली पंक्ति में बैठे ,खड़े ,सोये व्यक्ति पाता आया है .अशोक राज में पिछली पंक्ति पर भी नज़र जानी चाहिए . दूसरी पंक्ति या आखिरी पंक्ति में कोई क्यों है . क्या पीछे खड़े की नियति हैं पीछे खड़े होना या आलस्य ,प्रमाद ,डर, ? क्या पीछे वाले को धक्का या मौका देकर आगे नहीं किया जा सकता .प्रोत्साहन तो सब पर असर छोडती है .फिर इस क्रिया से कोई अबोध वंचित कैसे रह जाता है .<br /><br />सुविधाभोगी असुविधा पर क्या बता पायेगा जिससे राजा सलाह करेंगे . राजा को पिछली पंक्ति की दशा का पता अगली पंक्ति वाले से चलने से रहा .विकास १० का हो १०० का नहीं हो, इस सिधांत का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता है ."प्रसाद" का अगली पंक्ति तक का ही वितरण .<br />राज्य में कई हाई स्कूल बिना हेडमास्टर के चल रहे है .प्राइवेट कोचिंग संस्थान असल विद्या, नक़ल विद्या , सकल विद्या का गुर सिखा कर परीक्षा फल को स्वस्थ बनाये हुए हैं .<br />राजा से अनुरोध है ,आप हर स्कूल को योग्य प्राचार्य ,आचार्य दीजिये इनको मालूम होता है अंतिम बेंच का हाल , ये बेंच बदलते रहते है और एक दिन ऐसा आता है अंतिम अबोध 'पहला' हो जाता है .और योग्य लोगों की कमी नहीं है राज्य में . योग्य में 'वोट' दीखता नहीं है राजनितिक चश्मे से ,सामाजिक चश्मे से ताकिये बहुत वोट होता है .बात करने चले हैं ,विकास करने चले हैं .संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-4737507429051663542011-02-28T15:05:00.000-08:002011-02-28T15:09:52.112-08:00दीया की बाती सी माँ !अँधेरे -उजाले ,सुख- दुःख, <br />अहसास जिसका हो सके <br />उन सब में आती जाती सी माँ !<br /> <br />मल-मूत्र, उलटी, थूक-खखार, <br />आँचल में सँवार लेती ,<br />प्रकृति की छाती सी माँ !<br /> <br />सर्वोतम पाठशाला में <br />सर्वोच्च शिक्षा का <br />क ख ग पढ़ाती सी माँ !<br /> <br />मनभावन खाना खिलाकर <br />सुनकर बच्चों की डकार <br />वासी रोटी खाती सी माँ !<br /> <br />अनवरत काम दर्द और थकान,<br />दिन भर के काँव काँव के बीच, <br />कोयल सी गाती माँ !<br /> <br /> <br />उभरता है अक्श उनके चेहरे पर<br />हमारे खरोच का भी <br />निज जख्म को छुपाती आत्मघाती सी माँ <br /> <br />अंतिम बूंद तक दे प्रकाश <br />स्नेह ख़त्म होने पर भी <br />जलना बंद नहीं करती <br />दीया की बाती सी माँ !<br /> <br />रोते बिलखते देखना नहीं पसंद <br />इसलिए आँख मूंद जाती है माँ !<br /> <br />बुला लेता भले हो निष्ठुर भगवन <br />रोके नहीं रूकती ममतामयी <br />सपनों में सौगात लाती सी माँ !संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-86491607486207048222010-10-14T03:55:00.000-07:002010-10-14T04:06:10.793-07:00"अपनी "खिचड़ी" को "खीर" कहना !"बिहार चुनाव" <br />बदलाव की इच्छा जब जब बलवती हुई है, बिहार के चुनाव का आधार जातिगत नहीं रहा . <br />१९७७ और २००५ का चुनाव और इसके परिणाम इसका प्रमाण है. सभी धर्म, जाति के लोग <br /><br />नीतिश जी को जिताया नहीं था ,बल्कि लालू जी को हराया था. बिहार करवट बदला, क्योंकि <br /><br />बदलना चाहता था. इसके लिए जातिगत नीति [अनीति ] को ताक पर रखना जरूरी था . <br /><br />बिहार विकास को हरी झंडी दिखाए वगैर ,नीतिश जी का एक साल भी टिकना मुश्किल था .<br />अर्थव्यवस्था जनमानस की सोंच को रिचार्ज करता है . बदहाली के राह में खुशहाली के मोड़ <br /><br />भी आते है उस मोड़ से चलकर चौड़ी सड़क पर आया जा सकता है . <br /> <br />विकास की इच्छा बिहार की थी . केवल नीतिश की इच्छा या प्रयास कहना , करोड़ों की भावना को <br />आहत करना होगा .क्योंकि उनके धुर विरोधी लालू जी पर भी विकास का भूत इस कदर सवार था <br />कि विकास को रेल की रफ़्तार देने में कोई कोताही नहीं बरती. आज पूरा बंगाल भले ममता अपने <br />कब्जे में कर लिया हो पर रेल बेकाबू है ." रेल विकास" से "बिहार विकास" का भरोसा जीतने <br />में लालू अब भी नाकाम हैं.<br />या यूँ कहें रेल विकास को चुनाव में भुना नहीं सके .सच ही कहा गया है ."सफलता के शिखर पर पहुंचना<br /><br />आसान हैं, मुश्किल है वहां पर टिके रहना" . लालू की नौटंकी फिर से चालू हुआ 'पार्टी टिकट इच्छुक' के <br />साक्षात्कार से . इस साक्षात्कार में भरपूर मात्रा में डांट फटकार ,दुत्कार , दुराचार,अत्याचार <br />जो उनकी पार्टी का शिष्टाचार है}का नंगा प्रदर्शन था . अपमानित कार्यकर्ता लाइन में लग कर उनके <br />'लालटेन' में 'तेल' तो नहीं ही डाल पायेगा .<br />चुनावी वादा चाहे किसी भी दल का हो ,पूरा नहीं होता . जनता अब समझ रही है . <br />बिहार में ७७ और २००५ के बदलाव में चुनावी वादा आने से पहले लोगों ने मन बना लिया था पटकनी देने की . <br /><br />जो "छूट" पिछले सरकार को मिलती आई है आवाम से वहीँ "छूट " नितीश जी भी चाह रहे हैं .<br />अब किसी भी सरकार को छूट देने की भूल जनता करती है तो बदलाव अपना अर्थ खो देगा .<br /> एक दरोगा चाह लेता है तो अपने थाने को २४ घंटे के अन्दर टकुये की तरह सीधा कर देता है ,<br />वैसे ही जिलाधीश अपने जिले को . फिर एक राज्य का मुखिया राज्य को क्यों नहीं कर सकता ? <br />क्यों अगला पांच साल माँगा जा रहा है ? अपनी "खिचड़ी" को "खीर" कहना उचित है ?<br />आप अपराधी को माला पहनाकर ,जनता को ताली बजाने को नहीं कह रहे ? <br /><br />" राजनीति में सब जायज है." इस कथन में राज्य का शोषण है , दोहन है .राष्ट्रद्रोह है . <br /><br />बिहार में कांग्रेस पुनर्जन्म हेतु गर्भ में है .वैसे गर्भपात का दंश कई बार झेल चुकी है.शुभ शुभ रहा <br /><br />तो नीतिश जी की "गोद " में खेलना पसंद करेगी . दिल्ली दरबार से नेता तय करने वाली पार्टी <br /><br />बिहारी जनमानस को केंद्र सरकार द्वारा दिए गए मदद को समझाने, बुझाने या भुनाने में नाकाम साबित हुई.<br />मतलब राज्य और केंद्र का लेन-देन ठीक वैसे ही रहा जैसे बिगड़ैल बेटा बड़ा होकर बाप से बोल दे मेरे में <br />आपका खर्च ही क्या है ? राबड़ी जी भी बोली थी "हमें केंद्र ने कुछ नहीं दिया".<br /> प्रो. रघुबंश ने बोलती बंद कर दिया था हिसाब देकर और उनका हिसाब लेकर .<br />कांग्रेस की चुनावी रणनीति बेहद फीकी है . <br /><br />और राम विलास तो भोग विलास में लिप्त हैं नहीं तो मायावती अपने ५० सेंधमार भेज पाती .<br /><br />नीतिश जी विकास की टोपी लगाये हुए भी परेशान है . छुपम -छुपाई खेलना पड़ रहा है .सांप-सीढ़ी भी .<br />जो इनका साथ दिया उसको तबाह और बर्बाद कर दिया इन्होने . भाजपा को अपना वाला "तीर" <br />मार कर" शर शैय्या" मुहैया करा दिया है .बोलने के लिए एक शब्द भी नहीं छोड़ा है जिसको मतदाता <br />के सामने भाजपा बोल सके .बिना शर्त समर्थन देने वाली भाजपा को सशर्त अपने साथ खड़ा होने की <br />इजाजत दिया है .मतलब "आना है आओ बुलाएँगे नही." उस मोदी से नहीं इस मोदी से काम चलाओ, <br />वरुण गाँधी से नहीं विकास की आंधी से काम चलाओ . जैसे इनका बाहुबली अबतक केवल जीवन बाटता रहा हो . <br /><br />जैसा लालू जी ने आडवानी जी का रथ रोककर मुस्लिम समाज का पुरजोर विकास किया था ,ठीक वैसा ही विकास नितीश जी ने "गुजराती मोदी" ,और "वरुण" की "उड़ान" रद्द करवाकर किया है .पता नहीं नेता लोग ठगी को किसी भी रंग से पोत देते है . <br />भाजपा अकेले भी लड़ती तो ४०-५० सीट निकाल ले जाती अभी मुश्किल से २० निकाल पायेगी .क्योंकि कमज़ोर साथी की जरूरत है नितीश को . उनकी चुनावी रणनीति पिछले ४ साल से चल रही है . क्षेत्र परिसीमन चुपके से अपने फायेदे को सोंच कर किया है .भाजपा की उम्मीदवारी को प्रभावित किया है. केंद्र के पैसे को अपनी जेब का बताने में कामयाब रहा है . खाली पटना और नालंदा का मेकअप करके बिहार को सपना दिखाया है . पत्रकार पटाये गए है. <br />"दिल वाले बचाए दिल अपना, हम तीर चलाना क्यों छोड़े ! "अपने आदमी की तैनाती एक साल पहले . साईकिल से कन्या शिक्षा , और शिक्षण से पंचर शिक्षक को जोड़ा है .विद्यार्थी और शिक्षक के घर वाले तीर तो चलाएंगे ही . नितीश जी सधे हुए नेता भी हैं .शरद यादव ,जार्ज जैसे को चार्ज किया .बिहार को अपना समझकर ही न किसी को बिहार मसले में फटकने नहीं दिया .'एकोअहम द्वितीयोनास्ति' <br /> <br /><br />कुछ भी हो अन्दर, 75 प्रतिशत लोग बाहर के लिपा पोती से प्रभावित है .एक मौका और नितीश जी को मिले शायद . चलिए दुआ करते है कि भाजपा को जिस मुकाम पर इन्होने पहुचाया है या इस चुनाव में जहाँ भेजने की तैयारी है .वो बिहारी मानस को नसीब न कराये. आदत में सुधार लाना जरुरी समझें. जो जन मानस १५ साल लालू के लालटेन की लाल रोशनी में गुजारा है ,उसे अगला पांच साल नीतिश की तीरंदाजी दिखने में हर्ज़ नहीं दिख रहा . जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझेगी जनता . <br /><br />--संजय शर्मा---संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-31485816812480463002010-06-18T03:33:00.000-07:002010-06-18T03:44:37.952-07:00"भूतपूर्व का भूत"रोते बिलखते और अब ललकारते भोपाल को<br />पुरे २५ साल बाद एडरसन की याद आई .<br />मिडिया को एडरसन को भगाने या भागने की<br />खबर क्यों न लगी एडरसन को तत्कालीन<br />प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री और कानून मंत्री ने भगाया<br />तो उसके बाद आये कई अलग अलग तरह<br />की सरकार, अलग-अलग तरह के प्रधानमंत्री<br />और उनका मंत्रालय क्यों आँखें बंद किये रहा ?<br />क्यों तथाकथित जागरूक और बुद्धिजीवी<br />विपक्ष सोता रहा ? देश प्रदेश की सरकार,<br />विपक्ष, और मिडिया अनभिज्ञ नहीं रहा होगा<br />एडरसन के भागने में भागीदारी इन सबकी है.<br /><br />आज चुनाव नजदीक है तो भोपू तो बजेगा ही.<br />देश की जनता किसी पार्टी पर भरोसा न करते<br />हुए भी वोट डाल आता है , नागनाथ या सांपनाथ<br />को जीतना तय होता है . जो सता में आता है वो<br />भूतपूर्व दोषी को उसके भूतपूर्व दोषपूर्ण कार्यों को<br />सीबीआई का आइना दिखाने की धमकी भर देता है .<br />बदले में वर्तमान में दूषित कार्य के लिए समर्थन<br />मिलता है . सभी जानते है पूर्ण प्रणाली दोषपूर्ण<br />है .फिर भी हाय-तोबा में शामिल होते हैं.<br /><br />एडरसन को जब आयात किया गया तब क्या<br />अनुमान नहीं था कि कोई हादसा हो सकता है ,<br />जबकि बचपन से पचपन तक का मानव ये<br />जानता है कि विज्ञान वरदान और अभिशाप दोनों है.<br />एडरसन ने गैस पाइप काटा था ? नहीं न .फिर ?<br />बिजली ने कम नहीं मारा है निर्दोर्षों को उसे भी<br />रोज गिना जाना चाहिए , उर्जा मंत्री को लपेटे<br />में लेना चाहिए .<br />एडरसन को लाया गया तो क्या कानूनी प्रक्रिया<br />इतनी लम्बी नहीं चलेगी कि वह जेल में दम<br />तोड़ दे बाद उसके फांसी की सजा होगी .पार्थिव<br />शरीर को फांसी दी जाएगी ?<br />सिर्फ और सिर्फ मुआवजा चाहिए उनके अभिशप्त<br />अवशेष को .नेताओ की राजनीति की रोटी पीड़ितों के<br />तवे पर नहीं सेंकी जानी चाहिए.<br />एडरसन का सर उन्हें नहीं चाहिए अब .आप तख्ती<br />चाहे जो लटका दे .एडरसन का जेब ढीली कराये तो<br />जानू .<br />ये भूतपूर्व का भूत किसी को अभूतपूर्व बनाने से रहा.संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-65119864284191690402010-05-21T05:47:00.000-07:002010-05-21T05:58:05.160-07:00अनिवार्य योग्यता<div>नक्सल के हाथो मारे गए भारतीय नागरिक सामान्य नहीं असामान्य थे .</div><div>क्योंकि वे "खबरी लाल" थे , और दुसरे पुलिस के जवान के "हमसफ़र" थे </div><div>बस के अन्दर .बस ये अनिवार्य योग्यता काफी था ,उनके चयन का .</div><div>खूनी राजनीति की थाली में "लालू की लाली " दिखना भी अनिवार्य था ।</div><div> </div>संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-51050921471585019042010-05-19T22:27:00.000-07:002010-05-19T22:32:33.334-07:00मौजूदगी !हर सफल आदमी के पीछे औरत होती है ,तो हर असफल आदमी के आगे भी औरत ही होती है .संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-92037653705069467262010-05-18T05:01:00.000-07:002010-05-18T05:20:56.801-07:00दंतेवाडा के दांत में फंसी जुबान और जवान !कमाल है गृह मंत्री जी, कसाब जैसे कसाई की सुरक्षा में जितने<br />जवान लगाये ठीक उतने ही जवान को दंतेवाडा के महायज्ञ में<br />आहुति दे आये . ये जो दो -दो लाख चार -चार लाख का "दक्षिणा"<br />बाँट रहे है इसे भी कसाब के सुरक्षा में लगे खर्च के बराबर करने<br />का इरादा है क्या ? चूहे , जेल से अदालत तक जैसा सुरंग कसाब के<br />लिए बनाये क्या अपने जवान के लिए नहीं बना सकते थे ?<br />तुम्हारी जुबान की तरह आज हमारे "जवान" लड़खड़ा रहे हैं.<br />तुम्हारी जुबान की कीमत है कि नहीं ,नहीं मालूम पर हमारे<br />जवान की कीमत १०-५ लाख रूपया नहीं "जीत" है .संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-38246195322051236712010-01-29T22:50:00.000-08:002010-01-29T23:08:01.277-08:00अंदाज़<p>गाँधी को रोज गोली दागने वाले आज शोक मना रहे हैं।</p><p>रघुपति राघव <span class="">राजा </span>राम .......<br /> </p>संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-17553781532994486912010-01-21T22:31:00.000-08:002010-01-21T22:38:25.809-08:00अलग मंत्रालय दे दो ना !किसी से भी अनुरोध करने के अधिकार के तहत मैं<br />भारत की सरकार से अनुरोध करता हूँ .कि अपने<br />मंत्रालय में एक का इजाफा तो करे "मंहगाई मंत्रालय"<br />केवल मंहगाई मंत्रालय ही मंहगाई बढाने घटाने का<br />पुनीत कर्त्तव्य समय समय पर निभाता रहे .<br />इस मंहगाई में कृषि मंत्रालय संभालना कितना<br />मुश्किल का काम है ऊपर से टेढ़े मुंह से मंहगाई<br />की घोषणा '' दूध महंगा होगा "<br />ये रायता बनाना तो बंद करें पिलीज !संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-58092231558564920882010-01-18T10:50:00.000-08:002010-01-18T10:52:28.928-08:00अमर ज्योतिमरते ही नेता अच्छे हो जाते हैं . कि नेता अच्छे होते ही हैं ?संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-68785730531804564682009-10-20T00:28:00.000-07:002009-10-20T00:30:41.349-07:00लगे पचासी झटके !काबिल कपिल जी को काफी सुधार का काम वाला मंत्रालय मिला. प्रतिशत को ग्रेड में बदलकर अब ग्रेड को प्रतिशत में बदल रहे हैं .फिर किसे सही माने प्रतिशत को हटाने के खेल को या फिर से प्रतिशत को लाने के खेल को ?मतलब प्रतिशत, शत प्रतिशत चलन में रहेगा ही . त काहेला नौटंकी किये पहले ? इ त ठीक वैसे ही न हुआ जैसे गेहूं का दाम कम करके खाद -डीजल का दाम बढा देना .असर कहाँ पड़ेगा ये जनता को बुझने दो . है कि नहीं ?अतः हे कपिल मुनि अपने आश्रम की नियमित सफाई पर ज्यादा ध्यान दे .प्रतिशत- ग्रेड का खेल आप बच्चों परछोड़ दें. वो लोग बढ़िया खेल लेगा .साफ़ साफ़ शब्दों में ये बच्चों का ही खेल है. मुझे मालूम है इसलिए मैं ये थोड़े न पूछूँगा कि आपने ग्रेड ए, में कितने प्रतिशत पाने को शामिल किया है,या ग्रेड बी में कितने ?अंत में कहता हूँ कि ये पचासी झटकना छोडिये .इससे दिल का पुर्जा -पुर्जा हो जा रहा है .संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-55681536786345362092009-04-28T22:42:00.000-07:002009-04-28T22:44:27.645-07:00आपत काल परखियहूँ चारी !तुलसी दास जी की कविता की एक पंक्ति याद आ गई .धीरज धर्म मित्र अरु नारी / आपत काल परखियहूँ चारी !<br />धैर्य अब रहा नहीं . धर्म का साथ देते तो सांप्रदायिक कहलाते सो राज धर्म भी निभा नहीं पाया .मित्र तो नीतिश थे ,सुशील मोदी थे ,जो हमारी हर उटपटांग हरकत पर कभी मुस्कुराते कभी ठहाका लगाते रहे . जन समूह के साथ प्रेस समूह भी हमारे हर जुमले को काफी तरहिज देते रहे . पत्नी जिसे भूतपूर्व मुख्यमंत्री काखिताब जीवनपर्यंत के लिए वो भी अब मेरे साथ ही धैर्य को तिलांजलि दे दी . पहले बोल ही नहीं पाती थी .अब अटर-पटर बोलती है .पीछे पीछे चला साला दो कदम आगे निकल गया है . नीतिश के दबाये सुशील मोदी भी हमें दबाते दिख रहे हैं . पिछडे भी अब विकास और सुशासन के तरफ भाग रहे हैं. कई पत्रकार जो मेरे गाली खाने और झिड़क को आर्शीवाद समझा वो लोग आजकल मेरे लालटेन का शीशा तोड़ने पर लगे हैं.सो अब लालटेन फकफका रहा है .लग रहा है कि तेल समाप्ति पर है .फैलाये हवा भी अपने साथ नहीं .संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-91576045705248088082009-04-27T02:06:00.000-07:002009-04-27T02:07:57.284-07:00परिभाषा !"बोलने वाले को वरुण, करने वाले को कसाब कहते है."संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-51559288728270318252009-01-22T03:22:00.000-08:002009-01-22T03:24:36.134-08:00तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?हमें जो कुछ कहना था आम जनता की तरफ़ से उसका एक पार्ट लिख दिया .बुरा लगा उनको जो सबकी बुराई करने की अच्छी-खासी दरमाहा [वेतन] लेते हैं. आप ग़लत हैं बन्धु ! मुझे टी.वी.की समझ नही है ये आपने लिख तो दिया .आपको आज़ादी का मतलब पता है ? समाचार का मतलब पता है ? अपने अधिकार और कर्तव्य का मतलब पता है ? नही पता है तो पांचवी का किताब पढ़े ,क्योंकि आप पांचवी पास से तेज नही है. पर घबराने की जरुरत नही है पदमश्री की उपाधि आप जैसे को मिल ही जाती है . आप हमारे राष्ट्राधिकारी तक को अंगुली दिखा सकते है लेकिन जिलाधिकारी की अंगुली पकड़कर चलने में परेशानी महसूस करते हैं . बताता हूँ जिलाधिकारी वह चीज है जिसके लिए आप स्नातक करते ही तीन बार पूरे जोर से तैयारी के उपरांत परीक्षा दिए और असफलता हाथ लिए पत्रकारिता में हाथ आजमाने लगे .सेंसरशिप का स्वरुप क्या था ? बैचैन कर देनेवाला था क्या ? मेरे ख़्याल से अभी विचार होना था . जिस प्रकार बच्चे छत से खेलते हुए निचे लुढ़क न जाए इसके लिए सुरक्षा घेरा दिया जाता है बस वही घेरा आपके इलाके में सेंसरशिप कहा जाता है .मेरे ख्याल से किसी की भी हद तो तय होनी ही चाहिए .आप खड़े कहाँ है इसकी समझ रहती तो बाउंड्री वाल की चर्चा ही न होती. आप अतिवादी से घिरे अपने आपको नही पाते ?नेताओं से पीटने ,गाली मिलने के अवसर का बार बार प्रसारण क्यों नही होता . जनता तो साथ होना चाहती है आपके साथ ऐसे मुद्दे पर .टी.वी जो है उसे समझने की समझ है हमें .आप जिनको आदर्श मानते है क्या कर पाये बोफोर्स का सोर्स लगाकर राज्य सभा पहुंचे तो गंभीरता की चादर ओढ़ बैठे .टी .वी. को क्या समझूं १०० चैनल में ५०% का आरक्षण आप न्यूज वालों ने ले लिया है .जिस पर न्यूज कम व्यूज ज्यादा होता है ,और अपने पास भी व्यूज खूब है . ५० के ५० पर कभी कसाब को कभी ओबामा को एक साथ देखते है .साक्षात्कार के लिए जिसे बुलाया जाता है उसे बोलने नही दिया जाता ,उसे तो माफ़ी मांगने के साथ समय का अभाव बताया जाता है फ़िर बार बार एक ही ख़बर दिखने दिखाने की क्या मजबूरी है .क्या कसाब , आरुशी ,प्रिंस ,ओबामा टाइप खबरे ही क्यों दिन रात चले . भारत विशाल देश है ,और क्या खबरों की अकाल नही किए हुए हैं आप लोग . आपकी चालाकी से आम जनता भी अब चालाक हो गई है . आपकी ख़बर पर एतवार कौन करता है ,आपका लाईव टेलेकास्ट पर से भी भरोसा उठ जाना साधारण बात तो है नही .इसलिए हे ख़बरदाता ख़बर की आंधी नही बयार चलाओ .पब्लिक रिमोट से ख़बर लेता रहेगा .आप खबरों को मल्टीप्लाई करते हो .हम पब्लिक तुंरत डिवाइड करने के बाद स्वीकारते हैं. आप जिसको डिवाइड करते हो हम मल्टीप्लाई करते है .अब बताइये आपने अपना विश्वास खोया है या पाया है ? आलोचना झेलिये ,झेलना होगा ! बिलबिलाइये नही .हम नेता नही है की आपसे सचेत रहे. जनता जो सोंचती है वो लिखा था ,लिखूंगा ."तुम नही होते तो हम मर जाते !" वाला गाना तो जनता कभी नही गाएगी. इसलिए हम केवल ये ही कहेंगे"तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?"संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-37250496598629685632009-01-16T02:34:00.000-08:002009-01-16T02:38:42.442-08:00मेरी मर्ज़ी !आप भी दूध के धुले तो हो नही ! बड़ा चिल पों मचा रहे हैं आजकल आप लोग .थोड़ा सा प्रतिबन्ध क्या लगा ,लगे अपने आपको लोकतंत्र का सबसे सजग प्रहरी बताने . अरे आप सजग रहते तो सरकार सजग नही रहती क्या ? आपके प्रसारण पर रोक लगाने वाला सरकार कहाँ से हो गया .ये काम तो आपके चैनल के मालिक के जिम्मे था . अच्छा किया विरोध करके . भला एक आई एस अफसर को क्या समझ हो सकती है ख़बर के असर का .ख़बर का असर कैसे ,कहाँ ,और कब डालना है ,कोई आप मिडिया से सीखे .कड़ी मेहनत सच्चे लगन से अर्जित पत्रकारिता का डीग्री डिप्लोमा से भला ,झटके में पाई जिला समाहर्ता के पद से कैसी तुलना .दिखाइए न जो जो दिखाना है , जो हो रहा है उसी को तो दिखाते है आप . प्रिन्स को गढे में आपने नही डाला था . सैफ अली के हाथ पर करीना आपने नही लिखा था .अभिषेक की ऐश्वर्या से शादी आपने तो कराई नही .मुंबई हमले पर लगातार आपकी देशहित नजरें थी ही . पर कैमरा उधर मुंह घुमा ही लेता है जहाँ देश हित नजर आए .राजनीतिक विचार धारा में डुबकी लगाने वाले पंडूबी पक्षी आप भी है .तभी तो गुजरात और दिल्ली से जीतते हुए को हार के कगार पर खड़ा बताते रहे . हरवक्त केवल शिवराज पाटिल ही नही कोट बदलते थे ,आप भी चोला बदलते रहते हैं . लोकतंत्र के चारो प्रहरी में से कोई एक भी सजग नही है .एक सोया आदमी दुसरे सोये को कैसे जगा सकता है ? अपनी जोरदार खर्राटे से ? चौबीस मिनट के लायक जिसके पास समाग्री न हो वो चौबीस घंटे चैनल बजा रहा है . आप तो माध्यम हो सरकार बनाने गिराने का आप पर प्रतिबन्ध सर्वथा अनुचित है .एक दुसरे के लिए सिद्ध खतरे की घंटी को बजने देना चाहिए . देश हित में जरूरी है अधिकार अपनी मर्ज़ी का .कर्तव्य भी अपनी मर्ज़ी का . मैं चाहे ये करू मैं चाहे वो करूँ मेरी मर्ज़ी . है कि नही ?<br />Posted by Sanjay Sharma at 5:25 PM दालान पर .8 commentsसंजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-33332315554196516022008-12-25T22:53:00.000-08:002008-12-25T22:54:28.400-08:00"करारा जबाब "वो आया हमारे कपडे फाड़े हमारे भाई के खून से हमारे घर का दीवार रंगा हर रिश्ते को रुलाया सिसकिया अभी थमने का नाम नही ले रही ये कह रहे है हमारा "करारा ज़बाब" है . वो नौ नपुंशक साठ घंटे के अनुष्ठान में दो सौ लोगों का हवन कर गया . और लगभग इतनी ही अधजली लकड़ी छोड़ गया आयोजित पंचकुंडी यज्ञ का सबूत . हम अपंग होते हुए भी पैर घिसटते चलने को "करारा जबाब " कहा है .नंबर दस भी मरने, मारने आया था मारने दिया जितने को मार सकता था पर मरने नही दिया मारने वाले को ये हमारा "करारा जबाब" ही वे हमारे ताज में आग लगाए रहे , हम मोमबती जलाकर ''करारा जबाब'' दिया है .लात की भाषा समझने वालों को बात समझाने को करारा जबाब दिया है . अरे मुर्ख ! शब्दों से मत खेलो कोई आया ,तुझे तेरे घर में पटकनी दी ,धूल चटाया . तुने अपने धूल से सने कपडे झाडे . होठों से ,माथे से टपकते खून को पोंछा है ,अपने रुमाल से इसे करारा तमाचा अपने गाल पर क्यों न मानते ?क्या शर्म को करारा जबाब न दे रहे हो ?संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4574252589989201472.post-67805964953871507752008-12-03T23:40:00.000-08:002008-12-03T23:49:23.108-08:00बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ !<span class=""><a href="http://daalaan.blogspot.com/2008/12/blog-post.html">बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ !</a><br />देखिये ! आप देख सकते हैं ! आप देख सकते हैं कि कैसे हम अपनी जान पर खेल कर आपको वह सब कुछ दिखा रहे हैं जो आप घर बैठे देख रहे हैं.जो आप देखना नही चाहते वो भी दिखाने को हम मोर्चा खोले बैठें हैं. इस देश का हम चौथा स्तभ हैं ,और जब स्तभ जमीं पर लुढ़क -लुढ़क कर मजबूत आधार दे रहा हो तो खतरों के निशान से ऊपर खतरा बह रहा है .ऐसा समझा जाना चाहिए . हम आपको बता दें कि वही सबकुछ हम अभी तक दिखा रहे थे जो आप आँख बंद करके देखना चाहा था .अब बात अलग है कि अभी सेना -पुलिस के मना करने पर वो सब कुछ हम नही दिखा पा रहे जो मेरा कैमरा अभी भी देख रहा है .हम नही चाहते कि आतंकवादी को हमारे जरिये कुछ मदद मिले .हम सेना पुलिस के साथ हैं हम उनकी कारवाई में खलल नही डालना चाहते. इसलिए लाइव दिखा कर आतंकी का लाईफ नही बढ़ाना चाहते.हम आपको साफ़ कर दें कि फिलहाल न तो हम "सबको रखे आगे " टी.वी. न "सबसे तेज टी.वी.'' हैं हम आपको बता दे फिलहाल दिल में इंडिया लिए मचल रहा हूँ मन तो कर रहा है कि सूचना के अधिकार के तहत आपको वो सब दिखा दूँ .पर ऐसा मैं नही करने जा रहा . हम आपको बता दे कि केवल दिखाने को मना किया गया हैबताने को मना नही किया गया है . हम आपको वह सब कुछ बताते रहेंगे .जो हम और हमारे कैमरे देखते रहेंगे. पर दिखायेंगे नही . जो दिखाया गया वो अनजाने में गलती से मिस्टेक हो गया. हम आपको बता दे कि हम “लाईव” नही दिखाते तो हमारे "फाइव" नही जाते . फाइव कहीं फिफ्टी न हो जाय इसलिए दिखाना बंद . हम आपको साफ़कर दें आतंकवाद से भिड़ने के तरीके में लोकतंत्र का हर स्तम्भ का मिस्टेक ,एक दुसरे के मिस्टेक को ओवरटेक करता गया है. हम आपको बता दे कि मिनट से ही घंटा बनता है . मेरे दिखाने से ५९ मिनट का काम ५९ घंटे तक चलेगा . पर आपको हम यकीं दिलाते हैं कि हमारा कैमरा नही चलेगा.आप देख सकते हैं कि अपने जांवाज कमांडो चारो तरफ़ से घेरे खड़े हैं .निचे कहीं आतंकी उतरे तो रेपिड एक्शन फोर्स के गोली का शिकार बनेगे , उनसे बचेगे तो ऐ टी एस ,ऐ टी एस से बचेंगे मुंबई पुलिस कि गोली से बच नही सकते .मतलब कि आतंकी पुरी तरह घिर गए हैं. गोलिया मेरी जुबान से भी तेज चल रही है . दहशत का माहौल हैदेखिये फ़िर से दो ग्रेनेड फेंक दिया है .एक कमांडो बुरी तरह घायल हो गया है अम्बुलेंस बुलाया गया है. देखिये ये सब हम आपको इसलिए नही दिखा रहे हैं कि हम नही चाहते कि आतंक का सहयोग हो. हम आपको बता दे आतंकी को लगातार फ़ोन पर पाकिस्तान से गाइड लाईन मिलने से आतंकी को लगातार लाईफ लाईन मिलती जा रही है .केवल दिखाने से ही उनकी मदद मिलेगी आंखों देखी बताने से मदद नही मिलती है सो हम बताये जा रहे हैं. लेट लेट कर , भाग-भाग कर .ये बात अलग है कि हमारे ऊपर भी ग्रेनेड दागे जा रहे हैं हमें उसकी परवाह नही है .हम सेना का मनोबल बढ़ने में विश्वास रखते हैं. अब ये अनुभव हर लड़ाई को लाईव करने में काम आएगा . देखिये पहले कमेंट्री रेडियो से होती थी अब टी.वी. पर प्रसारण होता है .हमारी टी.वी. को कभी मौका मिलता नही क्रिकेट मैच दिखाने का ,हमेशा सौजन्य से काम चलाता रहा , कोई फ़िल्म वाला अपने फाइटिंग सीन को कभी कवर नही करने दिया .वैसे आप सभी की इच्छा पूर्ति प्रतिबन्ध से पहले कर चुका हूँ .हम इनके प्रतिबन्ध को अनुबंध मानता हूँ .आप संयम और धैर्य धारण किए रहे क्योंकि हम इस बीच एक भी विज्ञापन तो दिखाया नही. फ़िर कहीं जाने की जरूरत नही है ,बने रहिये हमारे साथ . देखिये हम धैर्य और संयम के संगम में डूबे उतावले होकर जिम्मेवार मिडिया दिखाने में कोई संयम रख नही पाये हाँ अलबता देश के दुश्मन को आदर सूचक शब्द से नवाज़ते रहे .मतलब भाषा पर संयम कायम था .हमने आतंकवादी के लिए "वह " की जगह "वे" "ग्रेनेड फेंक रहा है " की जगह "ग्रेनेड फेंक रहे हैं." बोलता रहा .आप देख सकते है न्योता देकर बुलाने के बावजूद दो आतंकी और १०० अपने के ढेर होते ही "रद्दी रिजेक्टेड पाटिल " भारत माता की जय बोल रहे हैं ,जबकि ये अधिकार अबतक भाजपा अपने कोटे का समझ रही थी.उनके मुस्कान से लबरेज जयकारा से आगे की लड़ाई में जीत हाशिल हुई .जितने नेता आते गए अपने थोबडा दिखाने हम आपको दिखाते रहे . कल्ह हम फ़िर दिखायेगे जो सिर्फ़ हम दिखा सकते हैं.अपनी फजीहत कोई और न करे इसके लिए हम आपके सहयोग से नेताओं को कल्ह तरीके से घेरेंगे . हम लगातार ५९ घंटे तक बक-बक करते रहे .पर उनके एक लाईन से उनको लाईन हाज़िर करवा देंगे. आप देख सकते हैं कि क्या हमने जुगाड़ लगाया हैं ,कल्ह आपके घर आऊंगा ,आपको रास्ते में रोक कर पूछूँगाकि कैसा लगा मेरा हिम्मत से भरा लाईव दिखाने की हिमाकत .अंत में हम आपको बता दें . हम चौबीसों घंटे तीन पाँच करते रहते हैं . क्या दिखाया जाय क्या नही दिखाया जाय उसकी समझ न होते हुए भी लोकतंत्र का सबसे समझदार स्तभ का तगमा अपने गले लटकाय रहता हूँ. और आपको हम ये भी बता दे कि ये देखने की चीज थी इसलिए ही बार बार दिखाया गया ,लगातार दिखाया गया । हर बार यह अपराध हमसे हो जाता है । आपकी नज़रें वो सब कुछ नही देख पाती जो मुझमे समाहित है .<br /></span><br /><span class=""></span><br />और अंत में आपको साफ़ साफ़ बता दूँ जो हमने दिखाया वो आप आँख बंद किए हुए भी देख सकते थे .महसूस सकते थे.संजय शर्माhttp://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com2