गुरुवार, 22 जनवरी 2009
तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?
हमें जो कुछ कहना था आम जनता की तरफ़ से उसका एक पार्ट लिख दिया .बुरा लगा उनको जो सबकी बुराई करने की अच्छी-खासी दरमाहा [वेतन] लेते हैं. आप ग़लत हैं बन्धु ! मुझे टी.वी.की समझ नही है ये आपने लिख तो दिया .आपको आज़ादी का मतलब पता है ? समाचार का मतलब पता है ? अपने अधिकार और कर्तव्य का मतलब पता है ? नही पता है तो पांचवी का किताब पढ़े ,क्योंकि आप पांचवी पास से तेज नही है. पर घबराने की जरुरत नही है पदमश्री की उपाधि आप जैसे को मिल ही जाती है . आप हमारे राष्ट्राधिकारी तक को अंगुली दिखा सकते है लेकिन जिलाधिकारी की अंगुली पकड़कर चलने में परेशानी महसूस करते हैं . बताता हूँ जिलाधिकारी वह चीज है जिसके लिए आप स्नातक करते ही तीन बार पूरे जोर से तैयारी के उपरांत परीक्षा दिए और असफलता हाथ लिए पत्रकारिता में हाथ आजमाने लगे .सेंसरशिप का स्वरुप क्या था ? बैचैन कर देनेवाला था क्या ? मेरे ख़्याल से अभी विचार होना था . जिस प्रकार बच्चे छत से खेलते हुए निचे लुढ़क न जाए इसके लिए सुरक्षा घेरा दिया जाता है बस वही घेरा आपके इलाके में सेंसरशिप कहा जाता है .मेरे ख्याल से किसी की भी हद तो तय होनी ही चाहिए .आप खड़े कहाँ है इसकी समझ रहती तो बाउंड्री वाल की चर्चा ही न होती. आप अतिवादी से घिरे अपने आपको नही पाते ?नेताओं से पीटने ,गाली मिलने के अवसर का बार बार प्रसारण क्यों नही होता . जनता तो साथ होना चाहती है आपके साथ ऐसे मुद्दे पर .टी.वी जो है उसे समझने की समझ है हमें .आप जिनको आदर्श मानते है क्या कर पाये बोफोर्स का सोर्स लगाकर राज्य सभा पहुंचे तो गंभीरता की चादर ओढ़ बैठे .टी .वी. को क्या समझूं १०० चैनल में ५०% का आरक्षण आप न्यूज वालों ने ले लिया है .जिस पर न्यूज कम व्यूज ज्यादा होता है ,और अपने पास भी व्यूज खूब है . ५० के ५० पर कभी कसाब को कभी ओबामा को एक साथ देखते है .साक्षात्कार के लिए जिसे बुलाया जाता है उसे बोलने नही दिया जाता ,उसे तो माफ़ी मांगने के साथ समय का अभाव बताया जाता है फ़िर बार बार एक ही ख़बर दिखने दिखाने की क्या मजबूरी है .क्या कसाब , आरुशी ,प्रिंस ,ओबामा टाइप खबरे ही क्यों दिन रात चले . भारत विशाल देश है ,और क्या खबरों की अकाल नही किए हुए हैं आप लोग . आपकी चालाकी से आम जनता भी अब चालाक हो गई है . आपकी ख़बर पर एतवार कौन करता है ,आपका लाईव टेलेकास्ट पर से भी भरोसा उठ जाना साधारण बात तो है नही .इसलिए हे ख़बरदाता ख़बर की आंधी नही बयार चलाओ .पब्लिक रिमोट से ख़बर लेता रहेगा .आप खबरों को मल्टीप्लाई करते हो .हम पब्लिक तुंरत डिवाइड करने के बाद स्वीकारते हैं. आप जिसको डिवाइड करते हो हम मल्टीप्लाई करते है .अब बताइये आपने अपना विश्वास खोया है या पाया है ? आलोचना झेलिये ,झेलना होगा ! बिलबिलाइये नही .हम नेता नही है की आपसे सचेत रहे. जनता जो सोंचती है वो लिखा था ,लिखूंगा ."तुम नही होते तो हम मर जाते !" वाला गाना तो जनता कभी नही गाएगी. इसलिए हम केवल ये ही कहेंगे"तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ ?"
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7 टिप्पणियां:
जबर्दस्त लेख। मिडिया के हाथो मे प्रसारण और पब्लिकेशन की सुविधा होने से समझती है कि केवल वही अपने विचार लोगो के उपर थोप सकती है। अब जमाना बदल गया है।
कमुनिकेशन सबके हाथो मे आ गयी है। मिडिया का पोल खुलती नजर आ रही है। जिस तरह बच्चो को बिल्ली के नाम से डराया जाता है वैसे ही मिडिया ईमर्जेन्सी के भुत से
डराती नजर आयी। नेताओं के हाथो कि कठपुतली मिडिया कितनी बिकाउं है इसका अंदाजा उनके डबल स्टैंडर्ड निउज से पता चल जाता है।
क्रुपया http://gaon-dehaat.blogspot.com को घुमा जाए
सही लिखा।सहमत हूं आपसे।
बिल्कुल सटीक लिखा।पू्र्ण सहमत।
Bahut bahut sahi kaha aapne....
तीखे तेवरों के लिए साधुवाद.
दीव्य दृष्टि से देखि हुई कुछ देदीप्यमान विचारो को रखा जाए ! मन में हिलकोरे उठ रहे हैं पढ़ने के लिए |
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