राजपथ पर दरवार सजा .समारोह था. जो अपने बदौलत लालटेन की रोशनी में प्रथम स्थान मैट्रिक में पाए वो सम्मानित किये गए. जो राज्य में प्रथम, जिला में प्रथम आए या फिर अपने स्कूल में अब्बल रहे हो उनके हौसले और बुलंद किये जाए. समाज भी सम्मान करता है, राजा ने भी किया .अगली पंक्ति में बैठे ,खड़े ,सोये व्यक्ति पाता आया है .अशोक राज में पिछली पंक्ति पर भी नज़र जानी चाहिए . दूसरी पंक्ति या आखिरी पंक्ति में कोई क्यों है . क्या पीछे खड़े की नियति हैं पीछे खड़े होना या आलस्य ,प्रमाद ,डर, ? क्या पीछे वाले को धक्का या मौका देकर आगे नहीं किया जा सकता .प्रोत्साहन तो सब पर असर छोडती है .फिर इस क्रिया से कोई अबोध वंचित कैसे रह जाता है .
सुविधाभोगी असुविधा पर क्या बता पायेगा जिससे राजा सलाह करेंगे . राजा को पिछली पंक्ति की दशा का पता अगली पंक्ति वाले से चलने से रहा .विकास १० का हो १०० का नहीं हो, इस सिधांत का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करता है ."प्रसाद" का अगली पंक्ति तक का ही वितरण .
राज्य में कई हाई स्कूल बिना हेडमास्टर के चल रहे है .प्राइवेट कोचिंग संस्थान असल विद्या, नक़ल विद्या , सकल विद्या का गुर सिखा कर परीक्षा फल को स्वस्थ बनाये हुए हैं .
राजा से अनुरोध है ,आप हर स्कूल को योग्य प्राचार्य ,आचार्य दीजिये इनको मालूम होता है अंतिम बेंच का हाल , ये बेंच बदलते रहते है और एक दिन ऐसा आता है अंतिम अबोध 'पहला' हो जाता है .और योग्य लोगों की कमी नहीं है राज्य में . योग्य में 'वोट' दीखता नहीं है राजनितिक चश्मे से ,सामाजिक चश्मे से ताकिये बहुत वोट होता है .बात करने चले हैं ,विकास करने चले हैं .
गुरुवार, 2 जून 2011
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2 टिप्पणियां:
sir! main ek shikshak hun aapne to bilkul dil ko chhu liya!!
बहुत सही लिखे हैं दरअसल ऐसा ही हो रहा हैं | धन्यवाद !
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