रोते बिलखते और अब ललकारते भोपाल को
पुरे २५ साल बाद एडरसन की याद आई .
मिडिया को एडरसन को भगाने या भागने की
खबर क्यों न लगी एडरसन को तत्कालीन
प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री और कानून मंत्री ने भगाया
तो उसके बाद आये कई अलग अलग तरह
की सरकार, अलग-अलग तरह के प्रधानमंत्री
और उनका मंत्रालय क्यों आँखें बंद किये रहा ?
क्यों तथाकथित जागरूक और बुद्धिजीवी
विपक्ष सोता रहा ? देश प्रदेश की सरकार,
विपक्ष, और मिडिया अनभिज्ञ नहीं रहा होगा
एडरसन के भागने में भागीदारी इन सबकी है.
आज चुनाव नजदीक है तो भोपू तो बजेगा ही.
देश की जनता किसी पार्टी पर भरोसा न करते
हुए भी वोट डाल आता है , नागनाथ या सांपनाथ
को जीतना तय होता है . जो सता में आता है वो
भूतपूर्व दोषी को उसके भूतपूर्व दोषपूर्ण कार्यों को
सीबीआई का आइना दिखाने की धमकी भर देता है .
बदले में वर्तमान में दूषित कार्य के लिए समर्थन
मिलता है . सभी जानते है पूर्ण प्रणाली दोषपूर्ण
है .फिर भी हाय-तोबा में शामिल होते हैं.
एडरसन को जब आयात किया गया तब क्या
अनुमान नहीं था कि कोई हादसा हो सकता है ,
जबकि बचपन से पचपन तक का मानव ये
जानता है कि विज्ञान वरदान और अभिशाप दोनों है.
एडरसन ने गैस पाइप काटा था ? नहीं न .फिर ?
बिजली ने कम नहीं मारा है निर्दोर्षों को उसे भी
रोज गिना जाना चाहिए , उर्जा मंत्री को लपेटे
में लेना चाहिए .
एडरसन को लाया गया तो क्या कानूनी प्रक्रिया
इतनी लम्बी नहीं चलेगी कि वह जेल में दम
तोड़ दे बाद उसके फांसी की सजा होगी .पार्थिव
शरीर को फांसी दी जाएगी ?
सिर्फ और सिर्फ मुआवजा चाहिए उनके अभिशप्त
अवशेष को .नेताओ की राजनीति की रोटी पीड़ितों के
तवे पर नहीं सेंकी जानी चाहिए.
एडरसन का सर उन्हें नहीं चाहिए अब .आप तख्ती
चाहे जो लटका दे .एडरसन का जेब ढीली कराये तो
जानू .
ये भूतपूर्व का भूत किसी को अभूतपूर्व बनाने से रहा.
शुक्रवार, 18 जून 2010
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