गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

"करारा जबाब "

वो आया हमारे कपडे फाड़े हमारे भाई के खून से हमारे घर का दीवार रंगा हर रिश्ते को रुलाया सिसकिया अभी थमने का नाम नही ले रही ये कह रहे है हमारा "करारा ज़बाब" है . वो नौ नपुंशक साठ घंटे के अनुष्ठान में दो सौ लोगों का हवन कर गया . और लगभग इतनी ही अधजली लकड़ी छोड़ गया आयोजित पंचकुंडी यज्ञ का सबूत . हम अपंग होते हुए भी पैर घिसटते चलने को "करारा जबाब " कहा है .नंबर दस भी मरने, मारने आया था मारने दिया जितने को मार सकता था पर मरने नही दिया मारने वाले को ये हमारा "करारा जबाब" ही वे हमारे ताज में आग लगाए रहे , हम मोमबती जलाकर ''करारा जबाब'' दिया है .लात की भाषा समझने वालों को बात समझाने को करारा जबाब दिया है . अरे मुर्ख ! शब्दों से मत खेलो कोई आया ,तुझे तेरे घर में पटकनी दी ,धूल चटाया . तुने अपने धूल से सने कपडे झाडे . होठों से ,माथे से टपकते खून को पोंछा है ,अपने रुमाल से इसे करारा तमाचा अपने गाल पर क्यों न मानते ?क्या शर्म को करारा जबाब न दे रहे हो ?

2 टिप्‍पणियां:

कुमार शैलेन्द्र ने कहा…

आप अच्छा लिखते हैं। बहुत दिनों बाद आपकी टिप्पणी देख पाया। लेकिन जितनी सार्थक टिप्पणी आपने मेरे लेख "भाषा की शुद्धता का सवाल" पर की, उसे देखकर आपको साधुवाद देने का मन हुआ। संस्कृत से अंग्रेजी में लिए गए शब्दों की एक भारी श्रृंखला है जिसके लिए पी एन ओक की पुस्तक का अध्ययन समीचीन होगा।

बेनामी ने कहा…

प्रस्तुतीकरण का अंदाज़ पसंद आया.