{शब्द ज़माने का .वाक्य बन गया मेरे से . सो सर्वाधिकार सुरक्षित कैसे हो ? इन बने -बिगडे वाक्य को कविता, गीत ,गजल,या छंद क्या कहा जाय ,मालूम नही . बस अच्छा लगता हूँ }
आजकल सोचते हुए अच्छा लगता हूँ।
ख़ुद को कोसते हुए अच्छा लगता हूँ ।
दर्द जो सीने से उठकर, चेहरे पर गिरती है।
वापस,दिल में खोंसते हुए अच्छा लगता हूँ ।
रखके उनके लबों पर उनके हिस्से का मुस्कान,
अब अपनी आंसू पोछते हुए अच्छा लगता हूँ।
जो ख़त्म न हो इन्तजार उसका शौक पाला है ।
गुजरे लम्हों की बाट जोहते अच्छा लगता हूँ ।
व्यस्क हो चले ज़ख्मी दिल का खुराक भी बढ़ा है।
रोज लजीज दिलासे परोसते हुए अच्छा लगता हूँ ।
5 टिप्पणियां:
सुंदर और यथार्थ रचना।
bhut sundar bhav ke sath likhi gai hai kavita. badhai ho. jari rhe.
आभार आप सबका ! आकर कुछ शब्दों के फूल जो छोडें है , मैंने उसका गुलदस्ता बना लिया है .
मुखिया जी के दालान पर भी "अच्छा लगता हूँ !" पोस्ट किया था चुकी मेरा सगा ब्लॉग ब्लोगवाणी पर नही है
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MUKHIYA JEE said...
कभी न ख़त्म होने वाली 'इंतज़ार' को अपना कर ,
तेरी मुस्कान को याद कर - ख़ुद ही ख़ुद पर हंसता हूँ !
July 4, 2008 2:33 PM
jasvir saurana said...
bhut sundar. badhai ho.
July 4, 2008 2:52 PM
Sarvesh said...
आत्म विश्वाश बढाने वाली कविता है. मैं जैसा भी हुं अच्छा लगता हुं. बहुत बढिया कविता सर. ऐसे ही आते रहनी चाहिये.
July 4, 2008 3:06 PM
राम एन कुमार said...
दर्द जो सीने से उठकर, चेहरे पर गिरती है।
वापस,दिल में खोंसते हुए अच्छा लगता हूँ
July 4, 2008 4:36 PM
रंजू ranju said...
जो ख़त्म न हो इन्तजार उसका शौक पाला है ।
गुजरे लम्हों की बाट जोहते अच्छा लगता हूँ ।
बहुत खूब
July 4, 2008 10:45 PM
bavaal said...
Adarneeya Sharmajee, is sunder kavita ke alava aapka poora blog padha. Main nauseekhiya to isee baat se ashcharyachakit hoon ke aap sabhi bloggers itne dino se itna shandar kaam kar rahe hain aur main bekhabar hoon. Mujhe mitra banakar margdarshan kijiyega.
-Shub samvaad sahit.
July 7, 2008 6:12 PM
P. C. Rampuria said...
रोज लजीज दिलासे परोसते हुए अच्छा लगता हूँ ।
शर्माजी आपने कुल 10 पंक्तिया लिखी है पर जैसे
10 पुराण लिख दिये हो ! वाह साहब !
बडा आनंद आया ! अगली पोस्ट कब डालेंगे ?
शुभकामनाएँ
July 7, 2008 10:13 PM
छत्तीसगढिया .. Sanjeeva Tiwari said...
बढिया प्रयास है, शब्दों और भावों की साधना में निरंतर लगे रहें ।
धन्यवाद ।
जो ख़त्म न हो इन्तजार उसका शौक पाला है ।
गुजरे लम्हों की बाट जोहते अच्छा लगता हूँ
"its again amezing and good"
Bahut Achhi Kavita Hia.
Isme Jaan Hai.
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